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________________ मध्यकालीन गुजराती साहित्यनां हास्य - कथानको आंधळे बहेरू मूर्खना वाणी वर्तन द्वारा विपरीत परिणाम सर्जाय ने एमांथी हास्यजनक परिस्थिति रचाय ते क्वचित कोई अज्ञ कशुं ज समज्या जाण्या विना निरर्थक वाणी वर्तननो आशरो ले ने एनुं प्रश्न पूछनार विशिष्ट अर्थदर्शन करतां सर्जाती 'आंधळे बहेरूं'नी परिस्थितिने विषय करीने पण मध्यकालीन वार्ताकारोए हास्य निष्पन्न कयुं छे. कालीदास विशेन। दंतकथामां राजकुमारो पूछे छे कई कालीदास समजे छे कई ने एमां पंडितो विशिष्ट अर्थदर्शन स्थापी हास्यजनक परिस्थिति सर्जे छे. डॉ० ह. चू. भायाणीए 'शोध अने स्वाध्याय' मां ( पृ० २४८ थी २५७ ) राजा भोज अने गांगो तेली, ईरानी लोककथानों काणो अंग्रेजमां आ प्रकारनां कथानकोनी चर्चा करतां लख्युं छे- 'आ कथाओनी खूबीनो आधार तेमां वपरायेली त्रण करामत पर रहेलो छे: सांकेतिक प्रश्नोत्तरी, पंडितना स्वांगमां गम'र अने एक ज संकेतना पूछनार अने उत्तर आपनार वडे कराता वे साव असंगत अर्थो ... संकेतनो भळतो ज अर्थ करवानी करामत लोककथाओनुं विनोद उत्पन्न करवानुं एक घणुं सगवडियुं साधन छे. ' ३१ अहीं काकतालीय किस्साओ के योगानुयोग कार्यसिद्धिनां तीसमारखाननो वार्ता जेवां कथानको सांकळी शकीए. पोताना हाथे अकस्मात एक सामटी ३० माखीओ मरी जतां पोतानी जातने वीरमां खपावतो तीसमारखां प्रवासे जाय छे ने झेरवाळा रोटलाथी हाथीनुं ने कटारी पडवाथी वाघ मृत्यु थतां वोर तरीके पंकाय छे. एवा ज गोटालामा ए आखा सैन्यने मारी नाखवा मां निमित्त बने छे. अहीं पण नायकनी योगानुयोग कार्यसिद्धि हास्य निष्पन्न करे छे. बोलने वळगनार आंधळे बहेरूं कुटातां के योगानुयोग पासां सवळा पडतां सुखने समृद्धि भोगवतां पात्रोनी जेम एथी ऊलट परिस्थितिमा मूकातां पात्रोनी परिस्थिति पण हास्यकथामां जोवा मळे छे. कोई एक प्रसंग परिस्थितिना संदर्भे कहेली वात के शिखामणने कोई मुग्ध भिन्न प्रसंग परिस्थितिमां वळगी रहें ने एथी दुःख अने आत्तिनो हारमाळा सजय, ए हास्यनुं कारण बनतुं होय छे. आ प्रकारना पात्रनी विभावना अडवाना पात्रमां मूर्त थई छे. आवश्यकनिर्युक्ति ने ए परनी चूर्णी भोथी मांडीने ते छेक जूनी गुजराती सुधीना बे हजार वर्षनु लांबु आयुष्य आ पात्रनु छे. नोकरी शोधवा नीकळनार मूर्ख बाळकने माता सूचना आपे के 'सामा माणसने खुश करवा मोटेथी जयकार करवो'. शिकारीओ शिकार माटे टांपीने बेठा होय त्यारे ज पेलो मोटेथी Jain Education International जयकार करी शिकारीनु काम वणसाडे ने 'दबाते पगले जवुनी नवी शिखामण पामे. शिखामणने अनुवरी धोत्री पासे दबाते पगले जतां चोर धारी मार पामे. लग्न प्रसंगे 'बहु 'खराब' कहेतां मार पडे ने 'बहु सारु' थयुं 'नो मृत्यु प्रसंगे उपयोग करवा जतां ए ज स्थिति आवी पडे - अडवाना भाईओनां आवां पात्रो संस्कृत, प्राकृत के जूनी गुजराती ज नही, ए सिवायनी अनेक भाषामां ओडनु चोड करतां फेलायेलां छे-क्यांक शिष्य बनी, क्यांक नोकर के पुत्र बनी. जेम बोलने वळगे तेम आवु पात्र कार्यने वळगीने अंध अनुकरण पण करे. गळे तरबूब फसातां ऊंना गळे जोडो मारनार वैद्यना कार्यनु कोई डोशाना गळाना गुपडानो उपचार करतां अडवो जीव पण ले छे ! For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.520757
Book TitleSambodhi 1978 Vol 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages358
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size9 MB
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