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________________ २८ हसु याज्ञिक अभ्यास अने अवलोकननी सरळता खातर करेलां आ विभागोमां ए तो स्वयंष्ट छे के हास्य जन्मात्रामा केन्द्रस्थाने बुद्धि छे, एनो अभाव अने सूक्ष्मता बन्नेमांथी हास्य निष्पन्न थई शके छे. मूर्ख कथा बुद्धिचातुर्यथ। कोईने छेतरवानी के छतरायेलाने छोडाववानो युक्ति हास्यविनोद पूरो पाडे छे, तेम कोई पात्रनी बुद्धिमंदता अने जडता पण हास्यनुं निमित्त छे. प्राचीन काळथी ज संस्कृत, पालि अने प्राकृत कथा साहित्यमां बौद्धिक जडता निरूपतां हास्यकथानको मळे छे. आ प्रकारनां कथानको कोई एक ज चोटमां पूरा थई जता टुचका जेवां होय छे. अमुक वाणी, वर्तन के कार्य कारण जे एवं होय के सांभळनारने खडखडाट हसावे. पालिमां जातककथाना टुचकामां सूतेला बावना माथा पर बेठेला मच्छरने मारतां बाप माथु भांगी नाखनार मूर्ख पुत्र अने कया झाडने पाणी पावानी जरूर छे ए जोवा दरेक झाडने मूळमांथी खेडनार वानरनी बात छे. बुद्धिमंदताने कारणे अहों ओडनु चोड वेतरतां काम. यवुं ने एनु योग्य परिणाम पामवुं तो एक बाजुरा, पण 'मालाना मुळगा गयां' जेवो स्थिति हास्य जन्मावे छे. कटाहद्वीपना लोको कोलपानो उपयोग करता होई माल खपाववा अगरने बाळी कोलसा वेचनार वेपारी पुत्र ( ८५, ३१५), सेकेला तल सीधे सीधा प्राप्त करवानी महेच्छा तलने सेकीने वावनार गामडियो ( ८६, ३१५), सवारे ऊठतां जळ ने अग्नि लेवा दूरं न पडे माटे रांते जळमां अग्नि नाखी सवारे 'बावना बेय बगडया' नी स्थितिमां मुकायेलो मंद बुद्धि ब्राह्मण (८७, ३१५), गुरु अने पत्नीनां नाकनो अदलाबदली करी पत्नीने सुन्दर बनाववा इच्छतो प्लास्टिक सर्जनो पूर्वज ( ८८, ३१६), चोरोए दाटेलु धन हाथ पडतां पत्नीना माथाने मेखलाथी, घनने हारथी, हाथने नूपुरथी ने कानने कंकथी शणगारनारो 'आंखनु काजळ गाले घस्युं' थीये अदकेरी प्रगति करनारो' अलंकार-लंबकनो रसियो वालम ( ९०, ३१६), सोनाने अग्निमां शुद्ध थतुं जोई, ए ज पद्धतिए रूने पण शुद्ध करवा मथतो रुवाळो (९१,३१६), झाड परथी मात्र खजूर लेवाने बदले आखा खजूरीना झाडने जमीनदोस्त करी खजूर लेनाशे (९२ ३१६), धनकळो कयांय बीजे न जाय अने राज्यने एनी दृष्टिनो कायम लाभ मळे एथी निधानदर्शीनी आंख फोडनारो वफादार मन्त्री (९२, ३१६), भोजननी बधी मीठाश मीठाने कारणे होवानु जाणतां मीठानी मूठी फाकनारो गामडियो ( ९४,३१६), दूधनो सामटो जथ्थो मेळववा एक मास सुधी गायने दोहवानुं मुलतवी राखनारो गोदोहक ( ९५, ३१६), व टकामां भरेलु तेल नीचेथी टपकतु तो नयीने, एनी चकासणी करवा तेल भरेलो वाटको उधो वाळनार तेलमुग्ध (१०१, ३२० ), पोतानो पिता बाल्या स्थाथी ज अखंड ब्रह्मचारी छे एवं जाहेर करतो ने 'तु एमनो पुत्र शाथी ?' ना उत्तरमा पोते मानसपुत्र होवानुं सगर्व जाहेर करनारो ब्रह्मचारी पुत्र (१०९, ३२२), रातोरात पुत्रीने औषध खत्रडावी मोटी करवानो वैद्यने डुकप फरमावी, वर्षो पछी दूर देशावर पडेली औषधी लावी पुत्रीने मोटी देखाडनार वैद्यने इनाम आपतो राजा (११३, ३२२), बेठेली मैनोनी निशानी राखी ससरानुं घर शोधवा मथता जीवराम भट्टना पूर्वज २ शोध अने स्वाध्याय, डॉ. ह. चू. भायाणी, पृ०९ ३ अहोंथी कौं समां प्रथम आंक टोनी-पेन्शरे भाषेला कथानकनो ने बीजो आंक कथा स. सा. ना निर्णय सागर ना भाषांतरना पृष्ठनो छे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520757
Book TitleSambodhi 1978 Vol 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages358
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size9 MB
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