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________________ मध्यकालीन गुजराती साहिस्यनां हास्य-कथानको शो, समुद्रमा पडेला चांदीना पात्रने समुद्रनां पाणीनी भमरीनी निशानीए याद राखी वळती वखते शोधवा मथतो प्रवासी (११४,३२२), पिताना मृत्यु पछी संपत्ति माटे झघडता भाईओने 'बधी वस्तुओनो सरखो भाग पाडो'नी सलाह मळतां घर, शय्या, तपेली, थाळी, बघांनां बब्बे टुकडा करनार (१२३, ३२८), 'बारणु साचवजे'नी शेठनी सलाहने वळगी रही राते नटनो खेल जोवा जतां बारणाने खभे ऊंचकी साथे लई जनार नोकर (१२८, ३२९) जेवा अभिधा-आराधको मूर्खकथाना नायको छे. संस्कृतमा आ प्रकारनां कथानको मुग्धकथा तरीके ओळखाय छे. कथा. स. सा., पंचतंत्र इत्यादिमां आ प्रकारनां कथानको एक साथे संकळायेला मळे छे. आ प्रकारना कथानकमां सामान्यतया तो सामान्यबुद्धि अने कार्यकारण समजवानी अशक्ति ज केन्द्रमा रहे छे. परन्तु क्यारेक एमां असाध्यने सिद्ध करवानी लोभ-लालच जेवी मनोवृत्ति परनो कटाक्ष पण कळाय छे. कोई केशमुग्ध वाळ उगाडवानी औषधी लेवा वैद्य पासे जाय छे त्यारे वैद्य पाघडी ऊनारी पोताना खुदना माथानी ताल बतावे छे छतां पेलो केशमुग्ध पोतानी मागणी जारी राजे छे (१००,३२०), पोताने बधु ज आवडे. के धारे ते काम पोते तो करी ज शके एवी मनोवृत्ति अने वलणमां प्रगटती मूर्खतानों उपहास, मर्दन करतां चामडी उखेडनार (१२२, ३२०), श्वेदादि पंचकर्म द्वारा कायाकल्पना अखतरामा खतरो पेदा करता ऊंटवैद्य (१३१, ३३०) नां कथानकमां मळे छे. आम अभिधाने ज पकडती बुद्धिमन्दता के जडता उपरांत लोभ, लालच, स्वार्थ, अहं जेवी सर्वसामान्य मनोवृत्तिनी निर्बळतामांथी पण आ प्रकारनां कथानको हास्य-निमित्तो शोधे छे. . मुग्धकथामां खडखडाट हसाववानी शक्ति के परंतु एमां विशेष स्थूळता छे. केटलाक अपवादरूप कथानको सूक्ष्म हास्यना निदर्शनो छे. सातमी पूरी खाता ज तृप्ति नो अनुभव थतां 'अरेरे एक पछी एक आ खोटी छ प्री खावाने बदले पहेलेथी ज जो आ सातमी पूरी ख धी होत तो क्यारनो धराई गयो होत' नो अफसोस करतां अपूपमुग्ध (१२९, ३२९) मां सूक्ष्म विनोद छे. मुग्घकथामां देखाती स्थूळतामा मानवीय सर्वसामान्य निर्बळताआनो सूक्ष्म उपहास छ , मध्यकालीन गुजरातीमां दृष्टांतरूपे आ प्रकारना कथानको बालावबोध ईत्य दिमां ऊतरी आव्यां छे अने गद्यमा तो 'मूर्खशतक स्तबक' रचायेलुं मळे छे." भरडक-बत्रीशी छुटा छवाया मूर्खकथानकोन संपादन संस्कृतमां कथासरित्सागरादि ग्रंथमां ने गुजरातीमा मखशतक स्तबकमां गद्यमां थयेलुं छे. तेम मूर्ख शिवपंथो साधु अने तेमना शिष्योनी जडता अने मंदबुद्धिन एवं संपादन 'भरडक बत्रीशी' मां थयेलुं छे. तत्त्वतः अहीं संग्रहायेला किस्साओ अन्यत्र मळतां मुग्ध कथानको ज छे, परंतु प्रस्तुत कृतिना जैन सर्जके, ए. बी. कीथ नोंधे छे तेम, ब्राह्मणधर्मने कईक उतारी पाडवाना हेतुथी अज्ञान बाबाओनी मूर्खताना रमूजी दष्टांतो मूक्यां छे. मूळ गुजराती रचना परथी संस्कृतीकरण पामेली 'भरटकद्वात्रिंशिका'ना संपादक जे. हर्टल प्रस्तुत रचनानी गुजरातना कोई जैन मुनिनी मूल रचना ई. स. पू. ४९२मां अस्तित्त्व धरावती होवानं जणावे छे. डॉ. ह. च. भायाणी" पण मूळ रचना गुजराती होवानुं जण वे छे. ४ जैन गुर्जर कवि भो-मो० द० देसाइ, भाग-३, खंड-२, पृ० १६५० ५ A History of Sanskrit Literature - A.B.Keith p. 293 ६ प्राकत जैन कथासाहित्य, डॉ. जे. सी. जैन पृ० ६३ नी पादटीप-६ ७ अनुसंधान, डॉ. ह. चू. भायाणी, पृ० २२१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520757
Book TitleSambodhi 1978 Vol 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages358
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size9 MB
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