________________
मध्यकालीन गुजराती साहित्यनां हास्य-कथानको
हसु याज्ञिक मध्यकालीन गुजराती साहित्यनो विचार करतां सामान्यतया नरसिंह, मीरां, भालण, अखो, प्रेमानंद अने वार्ताकार शामळनी रचनाओ ज खयालमां आवे छे, एथो तो मध्यकालीन साहित्यमा हास्य अंगे विचार करतां ज मांडण के अखाना कटाक्षो, प्रेमानंदनां आख्यानोनां केटलांक हास्यसभर प्रसंगो अने शामळनी केटलीक उक्तिओ स्मरणे चहता, हास्य परत्वे मध्यकालीन गुजराती साहित्य कंइक उदासोन छे, एवु कोईने सहेजे लागे. भक्त, भक्ति अने भगवानमां ज सीमित बनी रहेलं आपणु मध्यकालीन साहित्य मृत्युनो संदेश ज वांचे छे, एवं आरोपण थयु ने एनो रदियो पण अपायो. मध्यकालमां रचायेला साहित्यमां पण जीवन धबकतुं हतु एनो पुरावो आपवा पूरती आपणे पद्यकथाने याद पण करी. परंतु हास्यनो विचार करतां 'चरण चांगी मूछ मरडी'मां शोधवां जतां मळे छे ने हास्य करतां अनेक दृष्टिए उत्कृष्ट ने उत्कट हास्य आपणा मध्यकालीन कथा साहित्यमा छे, जे जाण बहार के क्वचित ध्यान बहार ज रही जतुं होय छे.
_ आ परिस्थितिनुं कारण मध्यकालीन कथा साहित्य परत्वेनी कंइक आछी रुचि अने कंइक अंशे अज्ञान छे. डाँ. हरिवल्लभ भायाणी, डॉ. भोगीलाल सांडेसरा, डॉ. मंजुलाल मजमुदार, प्रो.के.का. शास्त्री जेवा विद्वानोना संशोधन-संपादनो अने दिशासूचनो, ए पहेलांना हरगोविंद. दास कांटावाला, नाथालाल शास्त्री, छ.वि.रावल, ची.डा. दलाल के मो.द. देसाइनां संशोधनसंपादनो के आधुनिक नवसंशोधको डॉ. भूपेन्द्र त्रिवेदी, अनसूया त्रिवेदी, भारती वैद, जनक दवे, सं.धू. पारेख, शशिन् ओझा वगेरेना पीएच.डी मिलेना शोध-प्रबंधो द्वारा कथासाहित्यनो अभ्यास थतो रह्यो होवा छतां, आ प्रकारना वास्तविक परिचय अने मूल्यथी साहित्यना अभ्यासीओनो घणो मोटो वर्ग अर्धज्ञात के अज्ञात जेवो ज रह्यो छे. आथी तो एवी एक सर्वसामान्य मान्यता घर करी गई छे के मध्यकालीन कथासाहित्यमा शंगार के वीर छे, बहु बह तो चमत्कारथी आंजी दे तेवां अद्भुतनां आलेखनोमां विक्रम ने खापरा चोरना वाचनक्षम पराक्रमो छ, हास्य तो दीवो लईने शोधवा जवु पडे तेम छे. जो के दीवो लईने आ बधं शोधवा जवं तो पडे छे ज, केम के आ अंगेनी सामग्री खूणे खांचरे छे. पालिभाषामा लखायेली जातक कथाओ के प्राकृत ने संस्कृतमां रचायेला कथाकोषो, नियुक्ति ग्रंथो, चूर्णीओ, वृत्तिभो, चरितो, जनी गुजरातीमां रचायेलां रासाओ, चरितो, बालावबोधा ने दुहा-चोपाईओ इत्यादिमां हास्यनो वेरविखेर तो क्यांक एकहथ्थु घणो मोटो जथ्थो छे. अहीं आ प्रकारनां कथानको मे केटलीक वार्ताओमां प्रसंगोनी सळंग हारमाळा रूपे आवतां हास्यरसिक कथानको विलोकवानो अभिक्रम छे.
मध्यकालीन कथासाहित्यमां कोई कृति एना समग्ररूपमा हास्यकृति कही शकीए एवी नथी. शगार, वीर अने अद्भुत मुख्य के प्राणभुत होय एवी कृतिओ मध्यकाळमां मळे छे. परंतु सळंग हास्यने ज उद्देशतः रचनाओ, भरडक-बत्रीशी, विनोद-वत्रीशी के मखशतक जेवी कतिओने अपवाद रूपे लेतां, अन्य कोई मती नथी. मध्यकाळमां जे कंइ हास्य ने हळवाश
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org