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मधुसूदन ढांकी - लक्ष्मण भोजक . पण आ. लेख कृत्रिम छे. केम के ई० स० १७२८, एटले के १८ भी सदीमां प्रतिमाओ आवो शैलीनी थती ज नहि. गौतम गणधरना शिरनी बाजुए रहेला कमलधरोनी शैली सोलंकी युगनी, अने तेरमा सैका के बहु ता चौदमाना पूर्वाध पछोनी जणाती नथी.ए बनेनी मुखाकृति परनो घसारो तेम ज गणधरदेवनी जोडेल हथेळीओ पण घसाइ गयेली होई आ प्रतिमा निश्चयतया पुराणी छे. गणधर गौतम जेना पर बेठा छे ते भद्रासनना घाट-आकार पण शत्रुजय परनी सं० ११३१ नी श्रेष्ठी नारायणनी मूर्तिना भद्रासननी नजीकना शैली अने भात बतावे छ.21 अति शुभ्र आरसमां कंडारायेली गौतम गणधरनी आ सुकुमार, सुष्ठु अने लालित्यमयी प्रतिमा ए युग एक उत्तम कलारत्न छे. ईस्वीसनना चौदमा पंदरमा शतकना यात्रिकोए शत्रुजयनी खरतरवसहीना मंडपमा गणधर गौतमनी प्रतिमा होवानो उल्लेख को छे,१३ जे मोटे भागे तो आज प्रतिमा होवी जोईए.28 (आ प्रतिमा लेख वगरनी हशे, जेथी दोशीवाळाओए तेनो उपयोग कर्यो जणाय छे)
शत्रुजय पर विशेष सर्वेक्षण चालु छे, अने ते दरमियान प्राप्त थनारी नवी सामग्री पछीथी एक पूरवाणी लेख रूपे प्रस्तुत करवा संकल्प छे.
टिप्पण पृ. १३ पंक्ति ३ परनी नोंधः-- शत्रुजयना मंदिरो फरता गढमां शिल्पमंडित तेम ज लेख भगवता पत्थरो परर्ण मां भरवामां आवेला. (आq ज गिरनार परना मंदिरोना किस्सांमां पण बन्यं छे) क्यारेक समारकाम दरमियान गढनी भरतीमाथी के चणतरमाथी ते जडी आवे छे. 1. EI Vol. II. 18. 2. G.O.S. No. 13, Baroda 1920. 3. भावनगर १९२१. 4. जुओ ज्ञानोदय (काशी) वर्ष ३, अंक३, तथा जनसत्यप्रकाश, वर्ष १७, अंक३; तेम
ज पं० अंबालाल प्रेमाचंद शाह, जैन तीर्थ सर्वसंग्रह, भाग पहेलो, खण्ड पहेलो,
अहमदावाद १९५३, पृ. १०५. 5. "पुण्यश्लोक महामात्य वस्तुपालना अप्रसिद्ध शिलालेखो तथा प्रशस्तिलेखो." श्रीमहावर जैन __विद्यालय, सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ, मुंबई १९६८ 6. उपर्युक्त ग्रंथ अंतर्गत. 7. एक तो उपर कह्यो ते पुंडरीक स्वामीनी प्रतिमानो लेख; तदुपरांत 'श्रेष्टी नारायण'नी मूर्तिनो
वि० सं० ११३१ ई. स १०७५नो तेम ज बीजे संवत १२'३ । ई० स० १२१७ नो ___पं. यशोवर्धननी मूर्तिनो लेख.. 8. जुओ मोहनलाल दलीचंद देशाई, जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, मुंबई १९३२, पृ.३४१, टी. ३६९ अने पृ ३७९ टी. ३९३.
आदि 'जोवदेवसूरिं'ए मरेल गायने मंत्रवळे जीवती कर्यानी किंवदंति मध्यकालीन साहित्य मां मळे छे, अने तेओ वायडगच्छना समर्थ अने प्रभावक आचार्य मनाया छे. • वायडगच्छनी गुर्वावलि विशुद्ध रूपे हाल प्राप्त नथी ते कारणसर. 9. जुओ, सं० आचार्य गिरजाशंकर वल्लभजी, गुजरातना ऐतिहासिक उत्कीर्ण लेखो,
भाग-१ लो मुंबई १९३३, पृ. २८-२९. 10 सं० आचार्य गिरजाशंकर वल्लभजी, गुजरातना ऐतिहासिक लेखो भाग, ३जो, मुंबई
१९४२, पृ.१६४-६५.
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