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________________ शत्रुजयगिरिना केटलाक अप्रकट प्रतिमालेखो २३ संवत १४४२ वर्षे माघ वदि १ बुधे खरतरगच्छे]....क्षे साह तेजा सुत साह पुरणा... श्रेष्ठीनी मूर्ति चौदमी सदीना आखरी चरण जेटली अर्वाचीन होवा छतां तेमां केटलांक आकर्षक तत्त्वो छे; जेम के शिर पर धारण करेल रत्नचूड, जे इस्वीसनना दशमा शतक अने अगियारमा शतकना पूर्वार्ध पछी नथी जोवा मळ: ( अने त्यारे पण खास तो स्त्रीओबा मस्तके ते धारण करेलु जोवाय छे.) केशगूफनमां अंबोडानो शैली ध्यान खेचे तेवी छे. श्रेष्ठीन मुख कुर्चाल छे. चरण पासे छे ते तेमना पुत्र अने पुत्रवधूनी मूर्ति होय तेम तर्क करी शकाय. (२९) .. आ एक पत्थरनी गुरुमूर्ति परनो खंडित लेख छे. तेमाथी संवत् अने केटलीक हकीकतो नष्ट थई छे. लेखमां मूर्ति छे तेनुं गुणरत्न (सूरि) नाम आवे छे. आ गुणरत्नसूरि ते तपगच्छीय सोमसुंदरसूरि (पंदरमां शतक, इस्वीसननो पूर्वार्ध) नी परंपरामां के पछी पंदरमा शतकना मध्यमां थयेला ए ज नामना खरतरगच्छीय मुनि होई शकेः (पण प्रतिष्ठापक सर्वानंद सूरि छे, 'देवकुलपाटक'-देलवाडामां एक कच्छोलिवालगच्छना 'सर्वाणंदसूरि'ए प्रतिष्ठावेल सं.१४९३ ई. स. १४३७नी प्रतिमा मळे छे आथी कदाच गुणरत्नसूरि प्रस्तुत गच्छना पण होई शके छे.) _ --- वदि २ शनौ पूज्य श्रीगुणरत्न---या ग्रथित कुलगुरु श्रीसर्वाण[न्दे]न करिता ॥ आ लेख 'विमलवसही' मंदिरना मूलप्रासादना गूढमंडपमां उत्तरद्वारनी जमणो बाजुना खत्त. कमां बेसाडेल 'कपर्दीयक्ष' (चित्र ३) नी पाटली पर छे. लेख खडित छे अने केटलाक अक्षरो दुर्वाच्य पण छे. लेखमां प्रारंभमां बृहद्खरतरगच्छना जिनमाणिक्यसूरिना शिष्य युगप्रधानाचार्य जिनचंद्रसूरिना समयनो निर्देश छे. संवत् आप्यो जणातो नथी. प्रस्तुत जिनचंद्रसूरिने सूरिपद से १६१२/ई०स०१५५६मां प्राप्त थयेलु अने छेक सं०१६७०/ई०स०१६१४मां स्वर्गवासी थयेला. आथी आ प्रतिमानी प्रतिष्ठा ई०स०१६१४थी केटलांक वर्ष पूर्वे थई चुकी होवी जोइए. लेखमां आवता सुमतिकल्लोलगणि ए ज मुनि लागे छे, जेमणे एक अन्य खरतरगच्छोय साधु हर्षनंदन गाणे साये अभयदेवसूरीनी स्थानांगसूत्रनी वृत्ति पर स.१६७३/ई०स० १६१७मां विवरण रचेलु.19 श्रीबृहत्खरतरगच्छे ॥ श्री जिनमाणिक्यसूरि-पट्ट-प्रभाकर-युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिविजयिराज्ये श्रोकपर्दि (यक्ष प्रतिमा ॥ करापितं । (सारंगेण ?) ।। पं० धर्मसिंधुरगणि पं० सुमतिकल्लोलगणीश्व[रे]ण...... (भा 'कपर्दीयक्ष'नी प्रतिमानुं वैधानिक विवेचन दा० उमाकान्त शाहे अन्यत्र को लु होई ते विषे अहीं विगतमां उतरशु नहि.)20 छेल्लो लेख 'गणधर गौतमनी प्रतिमा पर उत्किर्णित छे (चित्र ४). लेख नीचे मुजब छेः (भाषा बिलकुल अपभ्रष्ट छे.) सं. १७८४ वर्ष कातीवदि ७ पालीताणा वास्तव्य श्रीमालीज्ञातीय दोशी क-आ पुत्र . दो० भाणजी पुत्र दोशी लीला पुत्र वरधमानयुतेनकारितं श्रीगोतमगणधर बिंबं प्रतिष्ठतं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520757
Book TitleSambodhi 1978 Vol 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages358
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size9 MB
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