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________________ २० मधुसूदन ढांको लक्षमण भोजक सामान्य रीते प्रतिमाओना आसनलेखमां लांची गुर्वावलि अपाती नथी, पण वादीन्द्र धर्मघोषसूरि सरखा महासमर्थ युगप्रधान, गच्छप्रवर्तक आचार्यना प्रशिष्यादि पोताना दादागुरुना गुरुथी पट्टावली आपत्रमा स्हेजे गौरव अनुभवता हशे शत्रु जयनो प्रस्तुत अभिलेख धर्मघोषसूरिनी एक बीजी अद्यावधि अज्ञात शिष्यशाखा त्रिषे माहिती आपतो होई, ए रीते पण महत्त्वनो पूरवार थाय छे. (१५) आ एक श्रावकनी बे स्त्रीमूर्ति साथेनी ऊभी प्रतिमा छे, लेख सं० १३४७ ई०स० १२९१नो छे. पुरुषनुं नाम रतनसीह छे. पण नाम आगळना बे अक्षरो उडी गया छे. कदाच ते अक्षरो प्रस्तुत श्रावक राजवंशी होवानु सुचन करता हशे केम के साथेनी स्त्रीओ - गावलदेवी अने नागलदेवी – ए बने आगळ 'राजपत्नी' विशेष भिधान जोडेलुं छे. लेखनो हेतु ( आदिनाथना ? ) चरणनी नित्य पूजार्थे आपेल ३६० द्रम्म (जेने अंक तथा शब्दोमां बतान्या छे), ते वात प्रगट करवानी छे. लेखनो पाठ नीचे मुजन छे. संवत १३४७ वर्षे द्वि. आषाढ सुदि १ गुरौ पुष्यनक्षत्रे [ राज १ ) श्रीरतनसीह राजपत्नि श्री गाधलदेवि द्वि. राजपत्नो श्री नागलदेवी मूर्तिः ॥ ( देव १ ) श्रीपादानां नित्यपूजार्थं आचंद्रार्क यावत् स्थितके कृत द्र ३६० षष्ट्यधिकशतत्रयं शुभं भवतु ॥ आमां 'द्रम्म'नो उल्लेख आवतो होई, लेखनु महत्त्व छे. रतनसीह नानकडी ठकरात धरावतो, वाघेलाओनो कोई सामन्त हशे ? ( १६ ) एक खारा पत्थरनी प्राग्वाट ज्ञातिना श्रावक-श्राविकानी मूर्ति नीचे सं० १३५२। ई० स० १२९६ नो नीचे प्रमाणे लेख छे. खीमसी कोई मंत्री कुळनो नवीशे हशे तेम, लागे छे. संवत १३५२ वर्षे श्रावण शुदि बुधे प्राग्वाट ( ज्ञातीयम ? ) हं वीजडसुत महं षीमसी मूर्ति महं चांपल देवि मूर्ति ( १७ ) हाल विमलवसही नामे ओळखाता मंदिरमां नेमिनाथनो चोरी ज्यां छे, तेनी पासेनी एक गुरुप्रतिमा पर नीचे मुजबनो लेख छे, जेमां शत्रुंजय महातीर्थ विषे कोई मंडलिक नामना श्राव देवकुलिकामा नेमिचंद्र सुरिनी मूर्ति स्थाप्यानो उल्लेख छे. लेख सं० १३५४ । ई० स० १२९८नो छे. सं० १३५४ कार्तिक शुदि १५ गुरौ महं श्री मंडलिकेन श्रीशत्रुंजय महातीर्थे स्वीयगुरु श्री नेमिचन्द्रसूरोणां मूर्तिः.....व्य (?) कारिता देवकुलिकायां स्थापिता च ||ठ|| ( १८ ) सं० १३७१ । १३१५ ई. स. ना माघ शुदि १४ ने सोमवारे शत्रु जयोद्धारक समराशा अने एमना कुटुंब जनोए प्रतिष्ठावेल सच्चिकादेवी आदि मूर्तिओना चारेक लेख आ अगाउ प्रसिद्ध थ गया छे. 18 ए ज वर्ष, मास, तिथि वारने एक अन्य लेख, -पबासणनो - पण जुदा ज गच्छ अने श्रावकनो, संघपति गुणपालनो, पार्श्वनाथचिंत्र कराव्या संबंधी मळ्यो छे. यथा: संवत १३७१ वर्षे माघ सुदि १४ सोमे श्रीशत्रु जयमहातीर्थे श्रीमालज्ञातीय ठ. क्षीमातेन संघ० गुणपालेन पितुः श्रेयोर्थ पूर्णिमापक्षीय श्रीसुमतिप्रभसूरिणां पट्टे श्रीतिलकप्रभसूरीणामुपदेशेन श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारापितं ॥ शुभं भवतु ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520757
Book TitleSambodhi 1978 Vol 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages358
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size9 MB
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