SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शत्रुजयगिरिना केटलाक अप्रकट प्रतिमालेखो १) संवत १३०४ द्वितीय ज्येष्ट सु० ९ सोमे सा० धणचंद्र सुत सा० वर्द्धमान तत्सुत सा० लोहदेव सा. थेहडसुत सा. भुवनचन्द्र पद्म चन्द्रप्रभृति कुटुम्बसमुदाय श्रेयोथे श्रीअजितनाथबिंब कारितं । प्रतिष्ठितं वादो श्री धर्मघोषसूरिपट्टक्रमागतैः श्री जिनचंद्र- सूरिशिष्य भुवनचंद्रसुरिभिः ॥ २) संवत १३०५ वर्षे आषाढवदि ७ शुक्रे सा० वर्द्धमान सुत सा० लोहदेव सुत सा. आसघर तथा सा. थेहड सुत सा० भुवनचंद्र पद्मचंद्रैः समस्तकुटुंबश्रेयोथं श्रीअजितनाथबिंब कारितं । प्रतिष्ठितं वादींद्रश्री धर्मघोषसूरिपट्टप्रतिष्ठित - श्रीदेवेंद्रसूरिपट्टक्रमायात श्री जिनचंद्रसूरिशिष्यैः श्रीभुवनचंद्रसूरिभिः आ उपरांत आबुनी विमलवसहीना सं० १३७८/ई० स० १३२२ ना खंडन बाद पुनः प्रतिष्ठाना प्रशस्ति लेखमां धर्मघोषसूरिनी पाटे थयेला अमरप्रभसुरिना शिष्य ज्ञानचंद्रे प्रतिष्ठा कराव्यानो उल्लेख छे.17 प्रस्तुत विमलवसही जिनालयमां से० १३९६।ई० स० १३४० ना एक गुरुप्रतिमा लेखमां ते धर्मघोषसरिनी पाटे थयेल आणंदसूरि, पछी अमरप्रभसूरि, ते पछी ज्ञानचंद्रसूरि अने तेमना शिष्य मुनिशेखरसूरिनी ए मूर्ति होवानु जणाव्यु छे. राजगच्छीय पट्टावलीमा देवेन्द्रसरि पछी रत्नप्रभसूरि, त्यारबाद आणदसूरि, अमरप्रभसूरि अने ज्ञानचंद्रसूरिने गणाव्या छे. * बोजी तरफ करहेडाना जिनालयमा स०१३३९।ई० स० १२८३ना वर्षमां, वादान्द्र धर्मघोषसूरिना गच्छमां थयेला मुनिचन्द्रसूरिना शिष्य गुणचन्द्रसूरिनु प्रतिष्ठापक आचार्यरूपे नाम मळे छे. प्रस्तुत गुणचन्द्रसूरि आथी सांप्रत शत्रुजयग लेखवाळा रत्नाकरसूरिना गुरुभाई जणाय छे. आथी शिलालेखो तेमज पट्टावलीमाथी प्राप्त माहिती अनुसार जयसिंह सिद्धराज, कुमारपाल तथा चाहमान अर्णोराजना समकालिक, दीर्घायुषी अने राजसम्मानित वादी धर्मघोषसुरिना गच्छनी शिष्य-प्रशिष्य परंपराना मुनिवरो विषे नीचे मुजबनी विस्तृत तालिका तैयार थई शके छे. वादीन्द्र धर्मघोषसूरि - देवेन्द्रसुरि देवप्रभसूरि पजून (प्रद्युम्न)सूरि रत्नप्रभसूरि जिनचंद्रसूरि मुनिचंद्रसुरि . आणंदसूरि भुवनचंद्रसूरि (सं० १२+९, देलवाडा) (सं० १३०४-५, तारंगा) ! गुणचंद्रसुरि - रत्नाकरसूरि अमरप्रभसूरि (सं०१३३९,करहेडानोलेख) (सं०१३४३ श जय) ज्ञानचंद्रसूरि (सं० १३७८ देलवाडा) मुनिशेखरसूरि (सं० १३९६, देलवाडा) (मर्ति) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520757
Book TitleSambodhi 1978 Vol 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages358
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy