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मधुसूदन ढांकी-लक्ष्मण भोजक .
आ नानी तोरणान्वित प्रतिमा धवलोज्ज्वल आरसमां कंडारेली छे (चित्र १). गुणसेनसूरि । भद्रासन पर अर्धपर्यकासन मां विराजमान छे. एमनो डाबो हाथ वरद मुद्रामां छे, ज्यारे जमणा हाथनी खंडित अंगुलिओ कदाच व्याख्यान-मुद्रा मां हशे. शिर पाछळ रजोहरण दर्शाव्यु छे. एमनी डाबी बाजु ऊमेली, डाबा हाथमां रजोहरण अने जमणा ऊँचा करेल हाथमां वस्त्रपट्ट धारण करेल प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य जिनभद्रसूरिनी होवी जोईए. ज्यारे जमणी बाजु हाथ जोडी ऊमेल साधु ते पंडित रामचंद्र हशे तेम लागे छे. रामचंद्रनी मुखाकृति अने ऊभवाना ढंगमां कारुण्यमय भक्तिभाव नितरी रह्यो छे. गुरुप्रतिमा पोते पण गरिमापूत जणाय छे. गुणसेनसूरिनुं नाम नागेन्द्रगच्छनी उपलब्ध पट्टावलिमां जडतुं नथी. पणे उदयप्रभसूरिना शिष्योमां मल्लिषेणसूरि, अगाउ उल्लिखित महेन्द्रसूरि तेम ज जिनभद्रसूरिना नाम मळे छे. आ जिनभद्रसूरिए वस्तुपालना पुत्र जैत्रसिंह माटे 'नाना-कथानक-प्रबंधावली' नी सं,१२९० / ई०स० १२३४ मां रचना करेली14: प्रस्तुत जिनभद्र अने सांप्रत लेखना जिनभद्र अभिन्न होई शके. जो तेम होय तो तेओ दीर्घायुषी होवा जोईए अने गुणसेनसूरि तेमना गुरुबंधु हशे, जेमना स्वर्ग-गमन बाद थोडा समयमा एमनी
आ प्रतिमा कराववामा आवी हशे (आ तर्कने समर्थन देतो महत्त्वनो अभिलेख कतार गामना लाडुआ श्रीमाळीना नाना मदिरना पार्श्वनाथनो धातु-मूर्ति पर मळे छे; त्यां प्रस्तुत प्रतिमा सं० १२९२ / ई० स० १२३६ मां नागेन्द्रगच्छोय गुणसेनसूरिए प्रतिष्ठा कर्यानो उल्लेख छे.18 आथी गुणसेनसूरि अने उदयप्रभसूरि समकालिक ठरे छे. अने आ वात गुणसेनसूरि उदयप्रभ- . सूरिना गुरुभाई होवाना तर्कने अनुमोदन आपे छे. ) आ लेखनो पं. अंबालाल प्रेमचंद्र शाहे प्रसिद्ध करेला लेखोमां समावेश छ :18 पण त्यां तेना पर विशेष चर्चा करेली न होई, अहीं ते (मूळ प्रतिमाना चित्र साथे) फरीथी प्रकट करवो इष्ट मान्यो छे.
(१४) प्रवेत आरसना पबासण परनो आ सं० १३४ ३ ॥ई०स.१२८७नो लेख पल्लीवाल शातिना संघपति पृथ्वीधरे करावेल अजितनाथदेव बिंब संबंधी छे. प्रस्तुत संघपति पृथ्वीधर ए जों शत्रंजय पर संघ लईने गयेला संघवी पेथडशा होय तो आ लेखनु महत्त्व वधी जाय छे. लेखनु मूल्य प्रतिष्ठापक आचार्य रत्नाकरसूरिनी वादीन्द्र धर्मघोषसूरिथी लई चार आचार्यों सुधीनी अपायेल गुर्वावलिने कारणे वळी विशेष वधे छे. लेख आ प्रमाणे छः ।
संवत १३४३ वर्षे पोष वदि बुधे श्री अजितनाथदेवबिंबं श्रीपल्लीवालज्ञातीय ..ठ. देदांगज देवडा श्रीपूना श्रेयसे संघपति साधु श्रीपृथ्वीधरेण कारितं ।
प्रतिष्ठितं वादोंद्र श्रीधर्मघोषसूरिपट्टालंकार श्रीदेवभद्रसुरि पट्टविभूषक श्रीपजूनहरि पट्टोदयदिनकर श्रीमुनिचंद्रसूरि शिष्यैः श्रीरत्नाकरमशि[भि]:
लेखमां जो के प्रतिष्ठापक आचार्यनो गच्छ बतायो नथी, तो पण वादीन्द्र धर्मघोषसूरि ए राजगच्छना सुपसिद्ध वादी धर्मघोषसूरि ज जणाय छे, जेमणे अजमेर (प्रा० अजयमेरु) मां चाहमान अर्णोराजनी सभामा दिगंबर पंडित गुणचंद्रनो पराजय करेलो. वादीन्द्र के वादी धर्मघोषसूरिनु नाम धरावता, सं० १३०४।ई स० १२४८ तथा सं० १३०५।ई० स० १२४९ना लेखोवाळी जिन अजितनाथन। बे कायोत्सर्ग प्रतिमाओ तरंगाना अजितनाथ-महाचैत्यमा प्रतिष्ठित छे. तेमां आ प्रमाणे सूरिक्रम आप्यो छे: +
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