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मधुसूदन ढांकी - लक्ष्मण भोजक
आवी परिस्थितिमां सन १९७३मां (स्व.) मुनिश्री पुण्यविजयजीना संग्रहमां शत्रु नयना अभि लेखोनी उतारेल नकलोनो समुच्यय जोवा मळ्यो, जेमां हजुसुध प्रकाशित थया नथी एवा पण लेखो जोवा मळ्या. प्रस्तुत संग्रहमांना त्रणेक प्रतिमालेखो दा० उमाकान्त शाह अने पं० अंबा - लाल प्रेमचंद शाहना उपर कथिन लेखोमां प्रगट थई चूक्या छे.' बाकी रह्या तेमांथी पुराणा तेमज महत्त्वना लाग्या तेवा पश्चात्कालीन कुल १५ लेखो चूंटी, अहीं प्रकाशित करीए छीए आ सिवाय १९७५ना मार्चनी २५ - २६ तारीखे शत्रुञ्जयना लेखोना सर्वेक्षण समये श्री अमृतलाल त्रिवेदी (सोमपुरा )ए, शत्रु जयना गढना समारकाम दरमियान प्राप्त थयेल, तेम न खुणे खांचरेथी एकठां करेल अने गिरिवर पर जुदे जुड़े स्थळे सुरक्षित रीते राखेल विविध प्रकारनी सलेख प्रतिमाओ अने पचासणो अमने बतावेलां, तेमांथी उतारेला १६ लेख अहीं उमेरी लई, कुल ३१ लेखोनो वाचना चर्चा साथे अहीं आपीशुं. लेख पाछळ ( स्व ० ) मुनिश्री जिनविजयजीनी प्रेरणा हती जेनो उल्लेख करवो जोईए. (आजे मुनिजी विद्यमान होत तो आ लेख जोई घणा राजी थात.) अहीं रज् करेल लेखोमां क्रमांक १-४, ७, ९, १३, १९-२२अने २६, २७, (स्व.) मुनिवर श्री पुण्यविजयजीना सग्रहमाथी लील छे.
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( १-२ )
बने लेखो संवत् ११३२ ना छे : द्वितीय लेखमां संवत्ना अंकमां आगळना बे आंकडा छोड दीघा छे. बैने वायटीय गच्छना जीवदेवसूरिनी अ. मन्याना श्रावकोना छे.
पहेलो लेख हाल उत्तर शृंग परना प्रसिद्ध अने पुराणा शांतिनाथना देरासर ना मूळनायकनी गादी पर छे, (जे तेनुं मूलस्थान नहोतुं ); बीजो, दक्षिण श्रृंग पर आदीश्वरनो टूकना मंदिरसमूहमा रहेल मंदिरस्वामी (जिन सिमंधर) ना कहेवाता, सोळमा शतकना ( ई० स० १५८५ना) मंदिरना मंडोवर ( भींत ) ना जालयुक्त खत्तक (गोखला ) मां पाछळथी राखेल पचासण पर अंकित छे (आ पैकना प्रथम अभिलेखनी वाचना स् तंत्र रीते सांप्रत लेखना द्विनीय संपादके पण करेली हती.)
पहेलो लेख कोई श्रावक ( नाम अपूर्ण) द्वारा पोताना पितानी प्रतिमा कराव्या संबंधी
छे यथा
संवत् ११३२ श्रीवायटीयगच्छे च श्रीजीवदेवसंततौ । पा - - - कः स्वपितुर्द्विनं कारयामास मुक्तये ॥१॥
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ज्यारे बीजो लेख गोविन्द श्रावके बिंच कराव्या संबंधी छे
संवत् ३२ श्रीवायटीयगच्छे च श्रीजीवदेवसंततौ गोविंदभावको बिंबं कारयामास मुक्तये ॥
मलघारीगच्छना हे पचंद्रसूरिना शिष्य लक्ष्मणगणिए संवत ११९९ / ई० स० ११४३ मां रचेल 'सुपासनाहचरिय' मां पूर्वे थयेला आचार्य जीवदेवसूरिना व्याख्यान सामर्थ्यनां खूब वखाण की छे ते काचः आ आचार्य होई शके; पण महामात्य वस्तुपालना समकालिक अमरचंद्रसूरि (स्त्रीसनना १३ मा शतकनो पूर्वार्ध) पोताना 'पद्मानंदकाव्य'नी प्रशस्तिमां कहे छे के 'वायड - गच्छनी सूरिपरंपरामां जिनदत्त, रा शेल्ल अने जोवदेवसूरि ए नामो वारंवार आव्यां करे छे: भी आ कया 'जीवदेवसूरि' हशे ते कहेतुं कठण छे.*
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