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________________ शत्रुंजयगिरिना केटलाक अप्रकट प्रतिमालेखो मधुसूदन ढांकी - लक्ष्मण भोजक श्वेतांबर जैन संप्रदायना महातीर्थ शत्रुंजयगिरिना मंदिरोमां विधर्मी आक्रमणोने कारणे, तेम ज मुख्यत्वे ते कारणसर थयेला पुनरोद्धारोना प्रतापे प्राचीनतर लेखोनो नाश, अने घणाक किस्सामां संगोपन थई जवाथी त्यां मळवा जोईए तेटली संख्यामां पुराणा अभिलेखो प्राप्त थया नथी. ए गिरिबर पर सांप्रतकाले जे कई वास्तु-शिल्प संलग्न अभिलेखीय सामग्री बची छे, खुणेखांचरे विखरायेली छे अने समारकाम दरमियान क्यारेक दटायेली- छुपायेली होय त्यांथी प्रकाशमां आवी छे, तेनुं पण अध्ययन अल्प प्रमाणमां ज थयुं छे. आवी परिस्थितिमां सर्वेक्षण - अन्वेषण द्वारा त्यांनी अद्यावधि अप्रसिद्ध सामग्री प्रकाशित करवामां आवे तो तेना मूल्य अने उपयोगिता स्वतः सिद्ध होई, ते विषे टीप्पण करवुं अनावश्यक छे. शत्रुंजयना अभिलेखो शत्रुंजय संबंधी अगाउ ब्युहूलर द्वारा Epigraphia Indica' मां केटलीक अभिलेखीय सामग्री छपाई छे, जेनो काळफलक केवळ सं० १५८७ / ई०स०१५३१ थी लई सं० १९४३ / ६०स० १८८७ सुधीनो छे. ते पछी थोडीक अन्य अने विशेष जूनी, चौदमा शतकमी, शत्रु जयतीर्थोद्धारक समगशा अने तेमना परिवारना सभ्योना लेखोनी सामग्री (स्व० ) श्री चमनलाल दलाल संपादित प्राचीनगूर्जर काव्यसंग्रहमा प्रकट थयेल छे. (आ बने स्रोतनी सामग्री पंछीथी मुनिश्री जिनविजयजीना विख्यात संकलन प्राचीन जैन लेख संग्रह भाग २३ म पुनः प्रकाशित थई छे.) त्यारबादनां प्रकाशनोम दा० उमाकान्त शाहे प्रगट करेल गणधर पुंडरीकमी प्रतिमानो सं० १०६५ / ई०स०१००९ नो अत्यंत महत्त्वनो आसनलेख, मुनिश्री पुण्यविजयजीए साधार चर्चा करेल, शत्रुंजय परनी महामात्य वस्तुपाले करावेल व्याघ्री - प्रतोली (बाघणपोळ ) ना उखरमाळमांथी छता थयेल, मंत्रीश्वरना सं० १२८६ / ई०स०१२३०ना ने बहुमूल्य प्रशस्ति लेखो,' तेमज पंडित अंबालाल प्रेमचंद शाहे "Some Inscriptions and Images on Mount Satrunjaya "" नामक लेखमां मूळ प्रतिमाभानां त्रण चित्रो साथे प्रकट करेल सातेक जेटला अद्यावधि अप्रकाशित प्राचीनतर लेखोने शत्रुंजय विषयक ऐतिहासिक सामग्री - प्रकाशनमां महत्त्वपूर्ण प्रदानो गणवा जोईए. शत्रुञ्जयगिरि पर चौदमा शतक, अने ते पछी सोळमाना उत्तरार्धथी तो ढगळाबंध प्रतिमालेखो - प्रशस्तिलेखो मळे छे; पण चौदमी शताब्दी पूर्वना लेखो प्रमाणमां अति अल्प संख्यामां मळ्या छे, प्रसिद्ध थया छे; बीजी बाजु सल्तनत काळर्मा शत्रु जयनी यात्रार्थे सारी संख्यामां संघो नीकळेला अने यात्रिको पण मोटी संख्यामां तीर्थदर्शने गयेलांनां प्रमाणो छे; पण तीर्थोद्धारक कर्माशाना समय ( ई० स० १५३१) पहेलां अने एथी गुजरातना छल्ला सुलतान बहादुर'शाहना काळ पहेलो, त्यो देवालय - निर्माणनां काम हाथ धरायानां प्रमाणो नथी, अने प्रतिमाओ भरायाना दाखला नहिवत् छे. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520757
Book TitleSambodhi 1978 Vol 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages358
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size9 MB
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