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स्वाध्याय
जयचरिअं : कर्ता-श्री चन्दनमुनि, हिन्दी अनुवाद-मुनि श्रीचन्दजी 'कमल' और संपादकप्रो. आर. डी. लद्, प्र० मोतीलाल पारख, श्यामसुखा हाउस, हहोंका चौक, बीकानेर (राज.) ई १९७६, मू. १५ रूपये । तेरापंथ के श्रीमज्जयाचार्यका चरित प्राकृत भाषामे सुप्रसिद्ध कवि मुनि श्री चन्दन मुनिने लिखा है । संस्कृत की तरह प्राकृत भाषा का प्रभुत्व भी श्री चन्दन मुनि की कलममें दिखाई देता है ।
तीर्थकर : पत्रिकाका निर्वाणचयनिका विशेषांक, दिसम्बर १९७६, हीरा भैया प्रकाशन, हुन्दौर, इस अंक का मू पांच रूपये । इसमें विद्वान संपादक डो. नेमिचन्द्रजीने भगवान महावीर निर्वाणके २५०० वर्ष के उत्सव निमित्त समाज और राष्ट्रने जो विविध प्रवृत्तियाँ की उनका ब्योरा दिया है । इतना ही नहीं किन्तु संपादकने समीक्षा भी की हैं कि जो हुआ क्या वह पर्याप्त हैं ? साहित्य क्षेत्रमें जो कार्य हुआ उसका लेखा डो. प्रेमसुमन की कलम से है। विद्यागोष्ठियाँ जो हुई उनका विवरण और मूल्यांकन डो. कमलचन्द सोगानी और डो. प्रेमसुमनने किया हैं । और भी कई लेख हैं। ई. १९७४-७६ में प्रकाशित जैन साहित्यकी सूची, महावीरसाहित्य की सूची, विशेषांकां और स्मारिकाओं की सूची भी दी गई है। प्रस्तुत विशेषांक केवल पठनीय ही नहीं संग्रह के योग्य भी है।
धर्मानन्द : संपादक ज. स. सुखटणकर, प्र. धि गोवा हिन्दु एसोसिएशन, मुंबई, १९७६, मूल्य २५ रूपये । इस ग्रंथ में मराठी भाषा में बौद्ध विद्वान श्री धर्मानन्द कोसंबी का लिखा आत्मचरित और उनकी जीवनी का संग्रह है। प्रस्तुत पुस्तक आचार्य कोसंबी की जन्मशताब्दी के उत्सव निमित्त प्रकाशित की गई है। आचार्य कोसंबी बौद्ध विद्वज्जगत में अपना नाम कर गये है। भारत में कष्टों का सामना करके पालि भाषा के अध्ययन को पुनर्जीवित किया है। ऐसे विद्वान का चरित्र पठनीय है, प्रेरणादायक भी।
अगरचन्द नाहटा अभिनंदन ग्रन्थ ( प्रथम खंड) : प्रधान संपादक, डा. दशरथ शर्मा, प्र. अगरचन्द नाहटा अभिनंदन ग्रन्थ प्रकाशन समिति, बीकानेर (राज) ई. १९७६, मूल्य १०१ रूपये । इस ग्रंथ में सुप्रसिद्ध संशोधक विद्वान श्री नाहटाजी का जीवनचरित दिया गया है और अनेक विद्वानों ने और परिचितों ने जो उनको श्रद्धासुमन भेट किये है उनका संग्रह है।
Prakrit Prakaso of Vararuci-Ed. Dr. Satya Ranjan Banarjee, Pub. Sanskrit Pustak Bhandar, Calcutta-700 006, 1975 A.D., Rs. 15/-.
This text is critically edited with a new commentary by Nārāyana Vidyāvinoda. The learned editor has written an Introduction dealing with the date of Vararuci and various commentaries of his grammar,
Bhagvan Mahavira and his relevance in Modern T'imes, Edited by Dr, Narendra Bhanavat and Dr. Prem Suman Jain, Pub. Akhil Bharatavarshiya Sadhumargi Jain Sangh, Bikaner, 1976, Rs. 25/-.
In this volume various aspects of Mahavira's life and teachings are discussed by many scholars including Dr. P.C. Vaidya, Dr. A.N. Upadhye, Dr. Tatia, Dr. Kalghatgi, Dr. Sikdar, Dr. Sogani and others,