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संघपति खीमचंद रास सेणिबद्ध सिजवाल चलंते, अति हरसिहिं खेला ग्वेलते; सुयण पयक्खण संचरह । देहडहरि संपत्तउ जाम, सरवर-तीरि अमास्यउ ताम, चहुदिसि चमरा ताणियइ ॥७॥ सरसा पाटण तणा महंत, जोगिणिपुर नरहडह तुरंत; माढ सुनाम मुलतान नयर । उच्च र ण समाण निवेस, पेरोजाबादह सुहवेस; पुर हिसार सावय मिलिय ॥८॥ तिहि ठामह अह दिन्नु पयाणउ, राउत आल्हू किउ सम्माणउ, धम्मी सवि मनि गहगहिय । सुभट सवे हयवरि आरुहिय, अप्ति-मुग्गर-धणु-तोमर-सहिय। संघ वलावई संचरई ॥९॥ थलसमुदु हेलइ लघते, छप्परि चंदुपहु पणमंते, लड्डणु नयरिहि संति जिणु । नागपुरिहिं छहि जिणहर देव, पूज महाधज करि बहु सेव, सुहनिवेसि आवासियउ ॥१०॥ बहुल इंगारसि फागुण मासे, रविवासरि आणंदि उल्हासे; उच्छरंगु उच्छलिउ जणि । सुगुरु मुणीसरसूरि सुविसाले, खीमचंद-संघाहिव-भाले; तिलकु कियउ तेयग्गलिहिं ॥११॥ वाजई करडि पडह कंसाला, गहिर परिहिं झुणि गीय झमाल; भट्ट भणइ छप्पय सरस । संघ पूज अइ वित्थर करए, दाणिहि मागणरोरु अवहरए; कप्पड़-कणय-कवाइ घणि ॥१२॥ सदरथ जीमणवार विसाल, सुपरि सयल मुणिवर संभाल; खीमसिरि रहसागलीय । लक्खी कप्पूरी वि सुयासणि, आसीसंति हरखि सोवासिणि; खीमचंद थिरु होह धर ॥१३॥