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के. आर. चन्द्र
बेबय (२८.२८) = बेबे की आवाज करना भडवाय (५५.२८) = भटवाद = लडाकू वृत्ति भत्तिज्जया (१२.१) = भ्रातृव्य = भतीजा भिक्खया (४७.२७) = भैक्ष्यता = भिक्षा-प्राप्ति मत्तु (३५.८) = मृत्यु मुट्ठिअ (४४.५) = मुष्टिक = तलवार की मूठ रक्खि (६७.५) = रक्षिन् = पालक, दंत (६५.९) = रणझण की आवाज करता [पासम. रुंद = मुखर, वाचाल] रुत्त (३१.९) = रोपित = बोया हुआ लइय (५७.१६) = नीत = लिया हुआ .. लिप्पण (३२.२१) = लेपन [पासम. लिंपण] लेप्पग (९.२३) = लेपक, लेप्यक = लेप करने वाला लोलुया (१०.२४) = लोलुपा, लोलुपता = लुब्धता वयणकारिया (५४.९) = वचनकारिका = सेविका, दासी वरइत्तअ (७०.२२) = वरपितृक, वरण करने वाला विच्छल (३५.९) = धोना, साफ करना । वितड्डि (३०.३) = वितर्दि = वेदिका [पासम. विअड्डि विपच्चय (६०.२७) = विप्रत्यय = अविश्वास [पासम. विप्पच्चय] विमह (३६.२८) = मुश्किल [संडिमोवि. विमद् = उलझन पैदा होना] वोच्छड (४४.१८) = वि+उत् +-छिद्-विनाश करना [पासम. वोच्छिंद] वोमीस (४६.२२) = व्यामिश्र 3 मिश्रित [पासम. विमिस्स] संपयत्ति (१६.१४) = संपत्ति सत्थेल्लय (४२.२८) = सार्थवाह (पासम. सथिल्लय] समल्ल (४३.१६) = साथ में चलना समल्लाव (४१.२५) = लौटाना सम्मत्त (२६.१७) = समाप्त सवत्थ (१३.३०) = सर्वत्र पासम. सम्वत्थ] सिरारोह (७०.१८) = शिर-आरोह-महावत सिरिअ (३८.१८) =कुष्ठरोगी सुज्झोडिअ (३२.२३) = सुज्झ उडिअ-अच्छी तरह से झाडा हुआ सुधंत (३.५) = सुध्मात = अच्छी तरह तपाया हुआ सुहावह (७४.१७) = सुखावह सुखदायी
नीचे दिये गये शब्द पाइयसद्दमण्णवो में पश्चात् कालीन ग्रंथों में से उधत किये गये हैं जबकि उनसे पूर्व ये शब्द वसुदेवहिण्डी में भी मिलते हैं । अमेज्झ (९.२७) = अमेध्य
उइन्न (४.२) = अवतीर्ण..