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के. आर. चन्द्र
उलोयण (११.७८) = अवलोकन = गवाक्ष [पासम. ओलोयण] उवइय (४७.४) = अवपतित = नीचे उतरा, अवतीर्ण [पासम, ओवश्य] उवगिज्झमाण (१३.२१) - उपगृह्णन् = अपनी तरफ आसक्त करता हुआ उवतप्प (५१.१६) - उपतर्पय् = खुश करना उवेह (५ ३.९) = उपेक्षु [संडिमोवि] = प्रतीक्षा करना उसारिय (५५.५) = उत्सारित-दूर भगा दिया (पासम. उस्सारिअ] उसुंभ (५५.१४) =उच्छुम् (?) = मारना, हानि पहुँचाना [संडिमोवि. शुम्भ ] ऊखली (४४.१८) उदूखली = ओखली [पासम. उक्खली, ओक्खली] एक्केक (७.२) =एकैक्य = परस्पर एक समान [पासम. एक्केक्कम ओरुभिय (४६.१४) = अवरुद्ध = रोक दिया खड़ा कर दिया ओसोवित (७.१५) = अवस्वापित = निद्राधीन किया गया ,
[पासम. ओसोवणी = अवस्वापनी] कंडियसाला (६२.१) निस्तुषणशाला कठिण (१८.१) = कठिन-वस्त्र कणतित, कणयत (६४.२७) = क्वणित, क्वणकित = स्फुरित,
पुलकित [पासम. कणि = स्फुरण] कणया (६७.१) = क्वणका = धुंघरू कपोइय (६२.१६) = कपोतक = कबूतर कम्मिइ (२३.१८) = कस्मिञ्चित् = किसी एक में कयवि (१०.१७) = कति + अपि = कितने ही पासम. कइवि] कायजल (३३.८)-जलपक्षी विशेष केणय (२२.१३) = केनचित् = किसी एक से [पासम. केणइ] कोमुइय (९.२३) = कौमुदी = पूर्णिमा (पासम - कोमुईj खण (११.२८) = क्षण = अवसर, प्रसंग गणियारी (७०.१७) = गणेरु = हस्तिनी गिहिवास (१२.१२) = गृहवास घरसार (३१.१९) = गृहसार = घर की सारी सम्पत्ति घिप्पंत (२९.८) = गृह्णन् = पकडता हुआ [पासम - घेप्पंत] चम्मडिं दाऊग (५०.१८) = आँख बचाकर, छेतरीने - गुज. चाउसाल (७३.१) = चतुश्शाल = चारों तरफ कमरों से युक्त मकान
[पासम. चाउस्साला] छुहमार (३३.६) = क्षुधामार = भूखमरा डहरिका (११.७) = छोटी (पासप. डहरिया, जन्म से १८ वर्ष तक की लड़की) णहरण (४०.२२)= भित्ति खोदने का एक शस्त्र माइगा (७.२५) = नायिका = ले जाने वाली