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पाइय-सह-महणवो में अनुपलब्ध वसुदेवहिण्डी की शब्दावली
के. आर. चन्द्र
यहाँ पर वसुदेवहिण्डी में प्रयुक्त ऐसे शब्द दिधे गये हैं जिनका अथवा जिनके मूल धातु, उपसर्ग सहित धातु, तद्धित रूप, समास-युक्त रूप या निम्न लिखित अर्थ-विशेष का पाझ्य-सह-महण्णवो में उल्लेख नहीं हुआ है। कुछ ऐसे भी शब्द हैं जिनमें मात्र ध्वनिगत (स्पेलिंग का) अन्तर या परिवर्तन है।
अइरिय (५.९) = अतिरेक या अतिरिक्त = अधिक [पासम. अइरेय अइसंघअ (५७.६) = अतिसंधक = अतिसंग्रहकारी, लोभी, ठग अच्छर (४१.२) = आस्तृ = बिछाना। अणुपव्वय (६.१९) = अनुप्रव्रज् = साथ में दीक्षा लेना अणुवय (६.८) = अनुव्रज = अनुसरण करना [पासम. अणुव्वय] अणुव्वायण (६२.५)= अनुवातन = अनुकूल पवन अपय (१२.९) = अपद = अयोग्य अप्पणिय (३०.३) = आत्मीय = स्वकीय [पासम. अप्पणिज्ज] अभिसक्कार (२९.१) - अभिसत्कार = समादर अवक्खड (५५.२२) = अवक्षिप्(?) = सामने फेंककर बाधा उत्पन्न करना अवखुराय (५५.१९) = अवक्षुराय = नीचे खरोंचना, खुरा से खोदना आगासतल (७१.३) = आकाशतल = छत, अगासी - गुज. आभास (३०.१) = अभ्यास = निकट [पासम. अब्भास] आयरिय (२८१९) = आहत = सम्मानित आरहअ (२४.२३) = आहेत = अर्हत् संबंधी उक्काय, उक्कुय (६५.७) = उछलना, बिखरना उक्कुठि (७०.१)= उत्कृष्ट = उत्तम, बहुत ऊँचा उच्छर (४५.११) = आक्रम् = आक्रमण करना [पासम. उत्थर] उणय (३६.२०) = अवनत = झुका हुआ [पासम. ओणय] उत्थाय (७१.१३) = उत् + स्थाय = उडकर, ऊपर होकर उपग्गह (१०.११) = उपग्रह = पुष्टि, पोषण [पासम. उवग्गह] उप्प (उप्पिहिइ) (६३.२७) = उत्पत् = उडना [पासम. उप्पय] उम्मत्ति (५१.३)%D उन्मत्तता = पागलपन उयर (५५.२०) = अवतृ = उतरना [पासम, ओअर] उयार (६२.७) = अवतारय् = उतारना [पासम. ओयार] उरस (५५.१६) = अव + रस या आरस् = चिल्लाना उलय (६६.१४) = अवलग = [गलेमें] डालना, पहिनाना [पासम. ओलइय]