SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुवलयमाला में प्रतिपादित राजस्थान निम्न कोटि के कार्य करती थीं। राजस्थान में आज भी ऐसी अछूत जातियों का अस्तित्व. तथा इनके झोपड़े शहर से बाहर देखे जा सकते हैं। राजस्थान में 'चारण' जाति की अधिक प्रसिद्धि है । उद्योतन ने गाँव-गाँव में जाकर अपनी जीविका कमाने वाली जाति को चारण कहा है। नट एवं मोष्टिक जाति के साथ उनका उल्लेख किया है" । राजस्थान की ओसवाल जाति प्रसिद्ध है । इसके कई गोत्र बाद में विकसित हुए है कुव० में ऐसे किसी गोत्र का उल्लेख नहीं है । अतः आठवीं शताब्दी के बाद ही ओसवाल आदि जातियां प्रतिष्ठित हुई प्रतीत होती हैं । " श्रीमाल जाति अवश्य इस समय अस्तित्व में आ गयी थी, जिसके मूल स्थान श्रभिन्नमाल का उल्लेख उद्योतन ने किया है। इसी तरह राजस्थान में चन्द्रगच्छ प्रचलित रहा है, जो चन्द्रकुल से विकसित हुआ है । उद्योतनसूरि ने स्वयं को चन्द्रकुल का आचार्य कहा है । सामाजिक जीवन में विवाह एक महत्त्वपूर्ण संस्था है । कुव० में विवाह का वर्णन है वैसा दृश्य राजस्थान के किसी भी विवाह मण्डप में देखा जा सकता है । विवाह के लिए पिता की आज्ञा सर्वोपरि थी । कुवलयमाला के विवाह में चार ही फेरे पड़ते है, जो राजस्थान में आज भी प्रचलित है । कुव० में उल्लिखित वस्त्रों और अलंकारों की पहिचान भी राजस्थान के पहनावे से हो सकती है । कुव० में जिस सिले हुए वस्त्र कूर्पासक का उल्लेख हुआ है, उसी का परिवर्तित रूप वर्तमान में प्रयुक्त बांहवाला अंगरखा है । रत्न, स्वर्ण आदि के आभूषणों के अतिरिक्त राजस्थान में आज जो कांच से जड़े हुए कांगन बनते हैं, उनका उल्लेख भी उद्योतन ने किया है । " १३ 1 कुव० में जिन धार्मिक व सामाजिक उत्सवों का वर्णन है वे भी राजस्थान के जन-जीवन में घुले-मिले हैं । इन्द्रमह, महानवमी, दीपावली, कौमुदीमहोत्सव, मदनोत्सव आदि उनमें प्रमुख हैं । इस समय युवराज्याभिषेक भी एक उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा था । गांवों में भी नाटक - मण्डली का प्रचार था । कुव० में जिस नट-मण्डली का वर्णन है और जिस तैयारी के साथ गांव के लोग उसे देखने पहुँचते हैं, वैसा दृश्य आज भी लोक कलाओं के प्रदर्शन के समय राजस्थान में देखा जा सकता है । कुव० में रासनृत्य एवं डांडियानृत्य के 'भी उल्लेख हैं, जो राजस्थान के प्रचलित नृत्य हैं । सामाजिक जीवन कृषि और वाणिज्य के विकास पर निर्भर है। राजस्थान में पानी के अभाव के कारण फसल सूखने के खतरे उठाने पड़ते हैं। उद्योतन ने भी इसका संकेत किया है। दो निर्धन युवकों ने खेती करने के लिए जो कुछ भी घर में धान्य था उसे खेत में डाल दिया । किन्तु मेघ के न वरसने से वह धान्य भी सूख गया। सूखा अथवा अकाल राजस्थान १- एड-गट्ट - मुलिप - चारण- गणा परिभमिउ समायत्ता । वही ४६.९ २- हिस्ट्री आफ ओसवाल तथा जैनिज्म इन राजस्थान, द्रष्टव्य । ३- चंदकुलावयवेण आयरिज्जोयणेण रइया में । कुव० २८३.४ ४ - इमिणा कमेण पढमं मंडलं. तहा चउत्थं मंडल । वही, १७१.११-१२ ५- अण्णा गाम- जुबईओ इव रीरिय-संख - वलय-काय -मणिय-सोहाओ, ६- तम्मिय गामे एक्कं गड पेडयं गामाणुगामं विहरमाणं संपत्तं । कुव० ४६ ९ ७- जं किंचि घरे घण्णं सव्वं खेत्तम्मि तं तु पक्खित्ते । वही ८.२ मेहा ण मुयंति जल सुक्कं तत्येय तं घण्णं ॥ कुव० १९९.७
SR No.520756
Book TitleSambodhi 1977 Vol 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages420
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy