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________________ कुवलयमाला में प्रतिपादित राजस्थान ई० ७६२ से ७८७ के मध्य मानते हैं'। यह अवन्तित्रर्मन् एवं कुव० में उल्लिखित अवन्ति राजा एक हो सकते हैं । श्री वत्सराज रणहस्तिन् का उल्लेख उद्योतनसूरि के समकालीन आचार्य जिनसेन ने भी किया है । उनके इस सन्दर्भ के आधार पर विद्वान वत्सराज को अवन्ति ( मालवा ) का राजा मानते थे । किन्तु कुव० के इस सन्दर्भ से यह प्रमाणित होता है वत्सराज भिन्नभाल का राजा था । उसका शासन जालोर में भी था । यह वत्सराज उस समय इसलिए भी मालवा का शासक नहीं रहा होगा क्योंकि उद्योतन ने कुत्र० में अयोध्या के शासक वर्मन द्वारा मालवा नरेश को पराजित होना बतलाया है। तथा मालव के लोगों की प्रशंसा भी उद्योतन ने नहीं को है ( १५३.६ ) । श्री वत्सराज की 'रणहस्तिन' उपाधि का साहित्यक उल्लेख भी उद्द्योतन ने सर्व प्रथम किया है । इस उपाधि से युक्त जो ९ मुद्रा मिली है, वे सब लगभग आठवीं शताब्दी की हैं | उद्योतन ने श्री वत्सराज को शत्रु के क्रोध को चूर करने वाला तथा प्रणयीजनों को आनंद देने वाले चन्द्रमा के समान कहा है। इस तरह कु से प्रतिहार शासन के प्रारम्भिक शासक के प्रभुत्व की जानकारी मिलती है । राजस्थान के राजनैतिक जीवन के सम्बन्ध में कुवलयमाला में अप्रत्यक्ष रूप से कुछ जानकारी उपलब्ध होती है । क्योंकि उस समय तक राजस्थान में राजनैतिक स्थिरता स्पष्ट नहीं थी । प्रतिहार शासन विकसित हो रहा था। उस समय गुप्तकाल की शासन व्यवस्था ही आदर्श थी । अतः कुव० में राजाओं को 'महाराजाधिराज' 'परमेश्वर' आदि उपाधियों से युक्त कहा गया है । " इन उपाधियों का प्रयोग राजस्थान के राजा भी करते थे । मन्त्री - परिषद् की शासन में प्रमुखता थी, जिसे उद्योतन ने 'वासव सभा' कहा है । प्रधानन्त्री को महामन्त्री के नाम से जाना जाता था | उद्योतन ने ऐसे लगभग तीस राजकर्मचारियों व अधिकारियों का सन्दर्भ कुव० में दिया है। इनमें से अधिकांश राजस्थान के राजघरानों में लम्बे समय तक उपस्थित रहे हैं । राजस्थान के शासन में सामन्त प्रथा एवं जमींदारी की प्रमुखता रही है। आठवी शताब्दी में भी सामन्त प्रथा प्रारम्भ हो चुकी थी । कुवलयमाला में मानभट एवं उसके पिता १. बुद्धप्रकाश, एसपेक्ट आफ इंडियन हिस्ट्री एण्ड सिविलाइजेशन पृ० ११५ २. पूर्वी श्रीमदवन्ती भूभृति नृपे वत्सादिराजे पराम् । शौराणामधिमण्डल जययुते वीरे वराsaति ॥५२॥ हरिवंशपुराण, प्रशस्ति ३. तझ्या मालव- रिंद विजयत्थंगओ । कुव० ८.२३ ४- पी०एल० गुप्ता, जर्नल आफ द न्यूमेसमेटिक सोसायटी आफ इंडिया, भाग १६, २८२ - ३ ५- पर-भड - भिउडी भंगो पाईयण - रोहिणी - कलाचंदो । सिरि-वच्छराय - णामो रण- हत्थी परिथवो 1 जइया । - कुव० २८३.१ ६ - जय महारायाहिराय परमेसर सिरिदढवम्मणंदण, कुव० १५४.३२ ७- द्रष्टव्य, लेखक का शोधग्रन्थ- 'कुवलयमाला कहा का सांस्कृतिक अध्ययन' वैशाली, १९७५ पृ० १६७ ८- बुद्धप्रकाश, 'द जेनिसस एण्ड करेक्टर आफ लेन्डेड अ स्ट्रोकेसी इन एशियन्ट इण्डिया जर्नल आफ द सोसल एण्ड इकानामिक हिस्ट्री आफ द ओरियन्ट, १९७१ *
SR No.520756
Book TitleSambodhi 1977 Vol 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages420
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size16 MB
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