________________
प्रेम सुमन जैन आलसी क्यों कहा है ? तत्कालीन अन्य सन्दर्भो के आधार पर ही कुछ समाधान खोजा जा सकता है।
कुव० में राजस्थान के लिए प्रयुक्त दूसरा नाम 'गुर्जरदेश' है। उद्द्योतन ने ग्रन्थ की प्रशस्ति में कहा है कि शिवचन्द्रगणि ने भ्रमण करते हुए श्रीभिल्लमाल नगर में निवास किया था' । वहां उनके शिष्य यक्षदत्तगणि ने मंदिरों के निर्माण द्वारा उस गुर्जरदेश को रमणीक बना दिया था । इन्हीं य दत्तगणि की परम्परा में उद्योतनसूरि ने जाबालिपुर (जालोर) में कुवलयमाला लिखी है । उस समय वहां का राजा श्री वत्सराज रणहस्तिन् था । इस वर्णन से स्पष्ट है कि आठवीं शताब्दी में भिन्नमाल व जालोर के आस-पास का प्रदेश गुर्जरदेश' के नाम से जाना जाता था । उद्योद्तन ने मरुदेश के तुरन्त बाद ही गुर्जरदेश के लोगों का वर्णन विजयपुरी की मंडी के वर्णन के प्रसंग में किया है । इससे भी ज्ञात होता है कि मरुदेश एवं गुर्जरदेश राजस्थान के भूभाग के मिले-जुले नाम थे। चोनी यात्री युवन च्वांग के वर्णन से भी राजस्थान के इस भूभाग को गुर्जरदेश कहे जाने की पुष्टि होती हैं ।' .. राजस्थान के नगरों में केवल भिन्नमाल, जालोर एवं पुष्कर का उल्लेख ही कुवलयमाला में हुआ है । श्रोभिन्नमाल (२८२.१) एवं पुष्कर का केवल नामोल्लेख हुआ है । पुष्कर की तीर्थ के रूप में प्रसिद्धि थी। जालोर के सम्बन्ध में उद्योतन ने कहा है कि इस पृथ्वी में ऊँचे अष्टापद (हिमालय) की भांति अलंघनीय मनोहर तथा श्रावकों के कुलों से युक्त जावालिपुर नगर है । वहां आचार्य वीरभद्र ने मनोहारी रत्नों की प्रभा से युक्त ध्वजा वाला ऊँचा एवं श्वेत ऋषभजिनेन्द्र का मदिर बनवाया था । उसी मंदिर में रह कर उद्द्योतन ने यह कुव० लिखी है। उद्योतनसूरि द्वारा उल्लिखित विशेषताएँ आज भी जालोर में उपलब्ध हैं। जालोर सोवनगिरि पहाड़ी की तलहटी में बसा है । लगभग दो हजार जैन श्रावक वहाँ रहते है तथा बारह जैन मंदिरों से यह नगर अलंकृत है । यद्यपि जिस ऋषभजिनेन्द्र के म दिर का उल्लेख उद्योतन ने किया उसकी पहिचान जालोर के जैन मंदिरों से नहीं हो सकी है ।
राजस्थान के ऐतिहासिक और राजनैतिक जीवन के सम्बन्ध में भी कुवलयमाला से कई नये तथ्य प्राप्त होते हैं । विभिन्न प्रसंगों में उद्योतनसूरि ने २७ राजाओं का उल्लेख कुव० में किया है। उनमें से अवन्तिवर्द्धन एवं श्री वत्सराज रणहस्तिन् के उल्लेख द्वारा राजस्थान एवं मालवा के इतिहास पर नवीन प्रकाश पड़ता है । ग्वालियर स्टेट से प्राप्त रनोड़ अभिलेख में अवन्तिवर्मन् नाम के राजा का उल्लेख है, जिसका समय इतिहासज्ञ १. सिरि-भिल्लमाल-णयम्मि संठिओ कप्परुखो व्व ।....कुव०, २८२. १ . २. रम्मो गुज्जर देसो जेहि कओ देवहरए हिं । -- वही, २८२. ११ ३. शर्मा दशरथ, राजस्थान श्रू द एजेज, पृ० ११० ४. सोमेसर-पहास-पुक्खराइसु तित्थेसु पिंडयं पक्खालयंतो परिभमलु, जेण ते पावं सुज्झइ
त्ति ।-कुव०, ४८.२५. . ५. तुंगमलधं जिण-भवण-मणहरं सावयाउलं विसम । जावालि उरं अट्ठावयं व अह अस्थि
पुहईए ॥ तुंगं धवलं मणहारि- रयण-पसरंत-धयवडाडोवं । उसमाजिणिदाययण कराविय
वीरभद्देण ॥- वही, २८२.२१-२२।। ६. एपिग्राफिआ इण्डिका, भाग १, पृ० ३५१