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घणैरव के महावीर की ...अध्ययन
(१४) पश्चिमी अधिष्ठान को मूर्ति में देवी के शीर्ष भाग में एक लघु जिन आकृति मी
उत्कीर्ण है। (१५) श्वेतांबर परम्परा में चक्रेश्वरी को अष्टभुजा बताया गया है और उसके हाथों में
वरद, शर, चक्र, पाश, चाप, वज्र, चक्र एवं अंकुश के प्रदर्शन का निर्देश दिया
गया है। (१६) श्वेताम्बर परम्परा में सिंहवाहना अम्बिका की भुजाओं में आम्रलुबि, पाश, बालक,
और शूणि के प्रदर्शन का विधान है। आम्रलुचि एवं बालक धारण करने वाली द्विभुज अम्बिका का निरूपण केवल दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में ही प्राप्त होता
(१७) श्वेताम्बर परम्परा में सर्पवाहना वैरोट्या के हाथों में उरग, खेटक, असि और
उरग के प्रदर्शन का निर्देश दिया गया है। (१८) ढाकी, 'अर्ली जैन टेम्पिल्स', पृ० ३३२। (१९) श्वेताम्बर परम्परा के प्रारम्भिक लाक्षणिक ग्रन्थों में भी महिषवाहना महाविद्या को
असि और फलक के साथ निरूपित किया गया है। (२०) नरवाहना महाकाली को ग्रन्थों में वज्र, फल, घण्ट और अक्षमाला धारण करने वाली
बताया गया है। (२१) पद्मवाहना काली को ग्रन्थों में अक्षमाला, गदा, वन एवं अभय से युक्त बताया गया
(२२) श्वेताम्बर परम्परा में गोधाचाहना गौरी के करों में वरद, मुसल, अक्षमाला एवं
पद्म के प्रदर्शन का निर्देश दिया गया है। (२३) श्वेताम्बर परम्परा पद्मवाहना गांधारी के करों में वज्र और मुसल के प्रदर्शन का
निर्देश देती है। (२४) श्वेताम्बर परम्परा में सिंहवाहना महामानसी की भुजाओं में वरद (या अभय), खड्ग,
घट और खेटक के प्रदर्शन का विधान है। (२५) श्वेताम्बर परम्परा में गजवाहना वज्रांकुशी को वरद, वज्र, फल एवं शृणि धारण करने
वाली बताया गया है। (२६) पद्मवाहना वज्रश्रृंखला को श्वेताम्बर ग्रन्थों में वरन, दो ऊर्ध्व करों में श्रृंखला, एवं
पद्म से युक्त निरूपित किया गया है। (२७) श्वेताम्बर ग्रन्थों में मयूरवाहना प्रज्ञप्ति का वरद, शक्ति, मातुलिंग एवं शक्ति से युक्त
निरूपित किया गया है। (२८) अश्ववाहना अच्छुप्ता को श्वेताम्बर परम्परा में धनुष, खेटक, खड्ग एवं बाण से
युक्त प्रदर्शित करने का विधान है। (२९) हंसवाहना मानसी के करों में वरद, वज्र, अक्षमाला एवं वज्र के प्रदर्शन का निर्देश
दिया गया है। (३०) श्वेताम्बर परम्परा में गरुडवाहना अप्रतिचक्रा की चारों भुजाओं में चक्र के प्रदर्शन
का विधान है।