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________________ २८ मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी होती हैं । एक में देवी ललित मुद्रा में आसीन है और दूसरी में स्थानक मुद्रा में अवस्थित है। दोनों में वाहन अनुपस्थित है। देवी की भुजाओं में वरदाक्ष, चक्र, चक्र, एवं जलपात्र स्थित है । महाविद्या वैशेट्या को दो सर्पो पर ललितमुद्रा में विराजमान प्रदर्शित किया गया है। चतुर्भुज देवी की भुजाओं में खड्ग, सर्प (त्रिफणा), खेटक एवं सर्प (त्रिफणा) स्थित है। जटामुकुट से सुशोभित सरस्वती को ध्यानमुद्रा में दोनों पैर मोड़कर पद्म पर बैठे प्रदशित किया गया है। सरस्वती को ध्यान मुद्रा में दरशाने वाला यह अकेला ज्ञात उदाहरण है । चतुर्भुज सरस्वती के हाथों में वरदाक्ष, वीणा, भग्न एवं जलपात्र प्रदर्शित है । पद्मासन पर ललित मुद्रा में विराजमान एक अन्य चतुर्भुज देवी की पहचान लक्ष्मी या निर्वाणी (१६ वीं यक्षी) से की जा सकती है । देवी के करों में वरदाश, सनालपद्म, सनालपद्म एवं कमण्डलु चित्रित है। उपर्युक्त देवियों के अतिरिक्त ईशान् एवं कुबेर दिक्पालों की आकृतियाँ भी उत्कीर्ण हैं । सन्दर्भ :(१) प्रोग्रेस रिपोर्ट ऑव द ऑर्कीयलाजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, वेस्टर्न सर्किल, १९०८, पृष्ठ० ५९ (२) ढाकी, एम० ए०, सम अर्ली जैन टेम्पिल्स इन वेस्टर्न इण्डिया, श्री महावीर जैन विद्यालय गोल्डेन जुबिली वाल्यूम, बम्बई, १९६८, पृ. ३२८-३३२. (३) तदेव नाहर, पूरन चन्द, जैन इन्स्क्रीपशन्स, भाग - १, जेन विविध साहित्य शास्त्र माला नं. ८. कलकत्ता १९१८. पृ०२१८-२१९ (५) नवें और दसवें दिक्पाल अनंत (या धरणेन्द्र) और ब्रह्मा हैं। ध्यान से देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि देवता की दाहिनी भुजा नवीन है और उसमें निश्चित रूप से कोई आयुध स्थित रहा होगा, जो सम्प्रति नष्ट हो गया है। (७) निर्वाणकलिका और अचारदिनकर जैसे श्वेताम्बर ग्रन्थों में अनन्त या धरणेन्द्र का वाहन पद्म बताया गया है और उसकी भुजा में सर्प के प्रदर्शन का निर्देश दिया गया है। (८) निर्वाणकलिका एवं अचारदिनकर में हंसवाहन से युक्त चतुर्मुख ब्रह्मा के करों में पुस्तक, पद्म एवं जलपान के प्रदर्शन का विधान है। (९) उल्लेखनीय है कि चतुर्मुल देवों के करों के आयुधों की गणना सर्वदा घड़ी के क्रम में, यानी निचली दाहिनी भुजा से प्रारम्भ कर, की गई है। (१०) श्वेताम्बर परम्परा में जिन ऋषभनाथ के गोमुख यक्ष के साथ वरद, अक्षमाला एवं पाश के प्रदर्शन का विधान है। (११) श्वेताम्बर परम्परा में जटामुकुट एवं यज्ञोपवीत से सुशोभित ब्रह्मशांति के करों में दण्ड, अक्षमाला, छत्र एवं कमण्डलु के प्रदर्शन का निर्देश दिया गया है। (१२) ढाकी, 'अर्ली जैन टेम्पिल्स, ' पृष्ठ ३३२ । (१३) सर्वानुभूति या कुवेर यक्ष को सामान्यतः २२ वें तीर्थकर नेमिनाथ से सम्बद्ध किया गया है। CE
SR No.520756
Book TitleSambodhi 1977 Vol 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages420
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size16 MB
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