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________________ २६ मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी जलपात्र स्थित है. । इस प्रकार स्पष्ट है कि केवल तीन महाविद्याओं - अप्रतिचक्रा, सर्वास्त्रमहाज्वाला और मानवी- को छोड़कर अन्य सभी महाविद्याओं को गूढमण्डप के प्रवेशद्वार पर आमूर्तित किया गया है। दहलीज के दोनों कोनों पर सर्वानुभूति यक्ष की ललितमुद्रा में आसीन दो आकृतियां उत्कीर्णित हैं । दाहिने छोर की मूर्ति के हाथों में अभय, परशु, पद्म एवं धन का थैला प्रदर्शित है । बायें छोर की मूर्ति फल, पद्म, पद्म एवं धन के थैले से युक्त है । द्वारशाखाओं के निचले भागों पर मकरवाहिनी गंगा और कूर्मवाहिनी यमुना की स्थानक आकृतियां उत्कीर्ण है। ____ गूढमण्डप के मेहराब पर लघु जिन आकृतियां चित्रित हैं । मेहराब पर ही द्विभुज नवग्रहों की स्थानक आकृतियां भी अंकित हैं । ज्ञातव्य है कि नवग्रहों का चित्रण श्वेतांचर स्थलों की दुर्लभ विशेषता रही है । बायीं ओर से प्रारंभ करने पर मुकुट एवं उपवीत से सुशोभित पहली आकृति सूर्य की है । समभंग में खड़ी सूर्य आकृति की दोनों भुजाओं में सनाल पद्म स्थित है । बाद की अन्य ६ आकृतियां त्रिभंग में अवस्थित हैं, और उनके करों में वरद एवं जलपात्र स्थित है । आठवी आकृति राहु की है। जिसका केवल धड़ प्रदर्शित है । नवीं आकृति तीन सर्पफणों के छत्र से युक्त केतु की है । केतु के कटि के नीचे का भाग सर्पाकार है। मूलप्रासाद के उत्तरांग पर केवल लघु जिन ओकृतियां ही उत्कीर्ण है । दोनों रूप स्तम्भों पर केवल जैन महाविद्याओं (१० मूर्तियां ) की ललितमुद्रा में आसान सवाहन आकृतियां अंकित हैं । सभी देवियां चतुर्भुज हैं । बायीं द्वार-शाखा की सबसे ऊपर की देवी पांचवीं महाविद्या अप्रतिचका है, जिसकी चारों भुजाओं में चक्र स्थित है 12० वाहन अनपस्थित है । दूसरी देवी गजवाहना वांकुशी है । वज्रांकुशी की दो ऊर्ध्व भुजाओं में अंकुश और निचली में वज्र प्रदर्शित है । दो-दो भुजाओं में वज्र एवं अंकुश का चित्रण करने वाली वनांकुशी की यह अकेली मूर्ति है। तीसरी पद्मवाहना देवी वज्रभृखला है, जिसकी ऊपरी दाहिनी एवं निचली बायों भुजाओं में क्रमशः पद्म और फल प्रदर्शित है, जबकि शेष दो भुजाओं में शृंखला स्थित है । चौथी देवी मयूरवाहना प्रज्ञप्ति है जिसकी भुजाओं में अभय, त्रिशूल, चक्राकार पद्म एवं फल पदर्शित है । पांचवी देवी वृषभवाहना रोहिणी ( पहली महाविद्या ) है, जिसके करों में अभय, बाण, कार्मुक एवं बोजपूरक स्थित है । दाहिनी द्वारशाखा के सबसे ऊपर की देवी सम्भवतः गौरी है। भद्रासन पर विराजमान देवी पद्म, पद्म, पद्म एवं फल से युक्त है । वाहन ( गोधा ) अनुपस्थित है। दूसरी देवी उरगवाहना वैरोट्या है, जिसकी भुजाओं में उरग, खड़ग, फलक, एवं उरग प्रदर्शित है । तीसरी देवी अश्ववाहना अच्छुप्ता है जिसके करों में शर, खड्ग (१), खेटक एवं चाप स्थित है । चौथी देवो हंसवाहना मानसी है, जिसने भुजाओं में वरद, वज्र, वज्र एवं फल धारण किया है । पांचवीं देवी सिंहवाहनां महामानसी है जो करों में शूल, पद्म (१), खेटक एवं मातुलिंग धारण करती है ।। * गर्भगृह के चौखट के छोरों पर ललितमुद्रा में आसीन सर्वानुभूति की दो आकृतियां आमूर्तित हैं । दाहिनी छोर की मूर्ति की निचली दाहिनी एवं ऊपरी बायीं भुजाओं में क्रमश:
SR No.520756
Book TitleSambodhi 1977 Vol 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages420
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size16 MB
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