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________________ घणेरव के महावीर की... अध्ययन २५ देवी को संभावित पहचान नवीं महाविद्या गौरी से की जा सकती है । गोधा पर आरूढ़ देवी की भुजाओं में मातुलिंग एवं कार्मुक प्रदर्शित है ।' पांचवीं चतुर्भुज देवी की पह चान आठवीं महाविद्या महाकाली से की जा सकती है। नरवाहना देवो की भुजाओं में अभय, वज्र, शूल (१) एवं फल प्रदर्शित है। छठीं देवी द्विभुज गांधारी (१० वीं महाविद्या ) है । पद्मवाहना गांधारी की भुजाओं में खड्ग एवं वज्र प्रदर्शित है। सातवीं द्विभुज देवी की पहचान महाविद्या काली या गौरी से की जा सकती है। कमलासना देवी मुसल और वरद से युक्त है। आठवीं चतुर्भुज देवी १६ वीं महाविद्या महामानसी है । सिंहवाहना देवी के करों में खड्ग, बाण (१) खेटक और धनुष प्रदर्शित है ।' २४ उत्तरांग के अतिरिक्त द्वारशाखाओं पर भी देवियों की कुल १२ संवाहन आकृतियां उत्कीर्ण हैं। सभी देवियां ललित मुद्रा में आसीन हैं। हम सर्वप्रथम बायीं द्वारशाखा की देवियों का अध्ययन करेंगे । ऊपर की पहली आकृति चतुर्भुज महालक्ष्मी ( या गजलक्ष्मी) का चित्रण करती है । पद्मासन पर विराजमान देवी के हाथों में अभय, सनाल पद्म, सना पद्म एवं जलपात्र स्थित है । ऊर्ध्व भुजाओं में स्थित पद्म के ऊपर दो गजों को चित्रित किया गया है, जो अपने शुण्ड उठाकर देवी का अभिषेक कर रहे हैं। दूसरी कूर्मवाहना चतुर्भुजा देवी की पहचान संभव नहीं है। देवी की भुजाओं में अभय, पाश, दण्ड (१) और पद्म प्रदर्शित है। तीसरी द्विभुजा देवी वज्रांकुशी (चौथी महाविद्या) है । गजारूढ़ देवी के करों में गदा और वज्र स्थित है । २५ चौथी द्विभुजा देवो वज्रङ्खला (तीसरी - महाविद्या) है । कमलासना देवी ने दोनों हाथों में शुङ्खला धारण किया है । २६ पांचवीं द्विभुजा मयूरवाना देवी की भुजाओं में त्रिशूल एवं अभय प्रदर्शित है । केवल वाहन के आधार पर देवी को सम्भावित पहचान दूसरी महाविद्या प्रज्ञप्ति से की जा सकती है । २७ छठीं चतुर्भुज देवी प्रथम महाविद्या रोहिणी है । वृषभारूढ़ा देवी के करों में अभय, खड्ग, धनुष एवं शंख प्रदर्शित है । दाहिनी द्वार शाखा पर सबसे ऊपर द्विभुज अंबिका को निरूपित किया गया है। सिंहवाहना अंबिका की भुजाओं में आम्रलुंचि एवं बालक स्थित है। दूसरी चतुर्भुज देवी की संभावित पहचान सर्वानुभूति यक्ष की शक्ति से की जा सकती है। ढाकी ने देवी की पहचान महाविद्या वज्रांकुशी से की है जो मात्र गजवाहन के चित्रण पर आधारित है । साथ ही यह पहचान इस आधार पर भी स्वीकार्य नहीं है क्योंकि रूपस्तंभों के अंकनों में किसी भी देवी को दो बार नहीं उत्कीर्ण किया गया है । गजारूढ़ देवी की भुजाओं में अभय, पाश, अंकुश एवं फल प्रदर्शित है । उल्लेखनीय है कि इन्हीं सामग्रियों को श्वेताम्बर स्थलों पर सर्वानुभूति यक्ष के साथ भी प्रदर्शित किया गया है। तीसरी चतुर्भुज देवी महाविद्या वैरोट्या है । सर्पवाहना देवी की भुजाओं में खड्ग, सर्प, खेटक और सर्प स्थित है। मस्तक के ऊपर सर्पफण का छत्र प्रदर्शित है । चौथी चतुर्भुज देवी १४ वीं महाविद्या अच्छुप्ता है । अश्ववाहना देवी के करों में खड्ग, शर, खेटक एवं चाप स्थित है। पांचवीं द्विभुज देवी १५ वीं महाविद्या मानसी है | हंसवाहना देवी की दोनों भुजाओं में वज्र प्रदर्शित है" । छठीं चतुर्भुज देवी १६व महाविद्या महामानसी हैं । सिंहवाहना देवी की भुजाओं में फल, खड्ग, खेटक और ४
SR No.520756
Book TitleSambodhi 1977 Vol 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages420
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size16 MB
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