________________
वैष्णवभक्तप्रबंधचोपाई
ताडन तापन कोइ न ( १ ज ) इ र मलिनपणुं तूहइ नवि धरई । सुवर्णतणी परि निर्मल जेह, कहि० |३७|| अधोमुषि घरतां ऊरघ घरइ, अह्निसि काम जे दहन ज करइ । आशामांहि निरासिउ जेह कहि ० ॥ ३८ ॥
कंदर्पणा दर्प हरइ, विषयासंगति मनि नवि धरई । ब्रह्मचारीसिउं रमइ नित जेह, कहि० ॥३९॥
ब्रह्म राषवा करइ उपाय पहिलं दृढ मन राइ ठाइ । दृष्टिराग निवारs जेह, कहि० ॥४०॥
यौवनभरि एकली नारि, किमह न जाइ ते घरबारि । तेहना शब्द न वांछइ जेह, कहि० ॥ ४१ ॥
-
हाव भाव जिहां नारी करइ, ते देषी पग पाछा भरइ । यौवनबलमद भंजइ जेह, कहि ० ||१२|| ब्रह्मतणुं रषोपुं करइ, जाणइ रषे कोइ परिहरइ |
तस कारणि वलो जागइ जेह, कहि० ॥४३॥
तप जप संयम मनि निर्मल धरइ, निद्रा आहार अल्प जे करइ । सदाचार संतोषो जेह, कहि० ॥ ४४ ॥
गंगा यमना सरसती वहइ, परमहंस तीणि संगम रहइ ।
रुंधी पवन मन तेहसिउं रमइ, कहि ||४५॥
•
अनाहत शब्द वाजइ छि जिहां, धांय ध्यान मन राषइ तिहां ।
अष्ट कर्म जे इण परि दमइ कहि० || ४६ ।।
छंडी सुर शशि हरिघरि जाइ, अमृत पामो निर्विष थाइ ।
कालचहिरि निवारt जेह, कहि० ||४७||
अंतरि राम अछछ कोइ सार, तास तणउ नवि लाभइ पार तेहनइं ओलषी ध्यासिं जेह, कहि० ॥ ४८ ॥
संवत पनर सत्यासीइ न्यानबुद्धि आणी मनि होइ । भवसायर ऊतरवा पार, शास्त्र मथीनह काढिन सार || ४९|| नयर तलाझइ आसो मासी सुदि पक्षि तेरसि मनउल्हासि | वैष्णव मावई जोई विचार, प्रबंध रचीउ परउपगारि ||५०|| भणसिइ सुणसिह जे इकचित्ति तेहनी होसिहं निर्मलमति । भाव घरी जे आरधिसिह, सर्व सुष संपति ते पामसि ॥ ५१ ॥ इति श्रीविष्णभगतं समाप्तं ॥ श्रीपत्तने लिषितं ॥ ऋषि गोरापठनार्थं ||