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कवि नन्नमरिकृत गजसु कुमाल चउढालीया
सं. वसंतराय ब. दवे प्रास्ताविक : मध्यकालीन गुजराती साहित्यमा गस, चोपाई आदिनी रचना लोक तोनी देशीओमां थवा लागी त्यारे तेने 'ढाल' संज्ञा आरवामां आवी. सुदोध के लघु राम विविध दालोमां विभक्त करवामां आवता. आ प्रकारनो ढालबद्ध रचनाओमा चार के । ढालोवाळी लघु रचनाओने संख्यानुसार चउढालीया के छढालीया तरीके ओळखाम
आवती. सामान्य रीते आवी कृतिमां जैन परंपराना लोकोत्तर स्त्री-पुरुषोनां चरित्र-प्रसंगनु संक्षिप्तमा वर्णन प्राप्त थाय छे. अत्रे सं. १५५८ (ई. स. १५०२) मां रचायेल, जैन परंपरा प्रचलित एवा गजसुकुमालना जीवनप्रसंगोने वर्णवतु, चउढालीयु संपादित करी रजू करवा आव्युं छे.
प्रतवर्णन अने संपादनपद्धति : प्रस्तुत कृतिनु संपादन उपलब्ध बे प्रतो परथी करवामां आव्युले.
प्रत क : प्रस्तुत प्रत ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अमदावादना श्री पुण्यविजय हस्तप्रत संग्रह्मांथी प्राप्त थई छे. एनो क्रमांक ८४६० छे. आ गूटकारूप प्रतमां कुल २२३ पत्र छ. अन्य कृति साथे प्रस्तुत कृति 'गजसुकुमाल चउदालीया' पान ८०-८२ पर उतारेको छे. प्रत्येक पत्रनु माप १०.५" ४ ४.६" छे. आ प्रत पातळा कागळ उपर देवनागरी लिपिम काळो शाही वडे लखायेली छे. सामान्यतः आ प्रतने मुख्य प्रत गणवामां आवी छे. प्रतन लेखन समय सं. १५८४ (ई. स. १५२८) नो छे.
प्रत ख : जेसलमेरना यतिश्री वृद्धिचंद्रजीना भंडारमाथी प्राम गूटका परथी मुनिश्री जिनविजयनीए करावेल प्रेसनकलनो अत्रे उपयोग करवामां आव्यो छे. जेने 'प्रत ख' एवी संश आपवामां आवी छे. ____ अत्र प्रत क ना पाठने मूळ ग्रंथपाठ तरीके लेवामां आवेल छे केटलांक स्थाना पर प्रत स्य ना उचित पाठोने पण ग्रंथपाठमां स्थान आपवामां आव्यु छे.
काव्यना कर्ता : नन्नसूरि : काव्यनी प्रशस्ति परथी आ काव्यना कर्ता कोरेंट गच्छन्ना सर्वदेवसूरिना शिष्य नन्नसूरि छे अने एनो रचना सं १५५८ (ई.स. १५०२) मा खंभात नगरे थई होवार्नु कही शकाय.
तिणि परि पनर अठावनई, खंभाईत माहि थंभण पास पसाउलई, रचीऊ ऊछाहि ।४४श्री कोरंट गछ राजीउ, श्री सावदेवसूरि,
तासु सीसु ननसूरि भणइ, मन आणंदपूरि ।४५श्री
आ सिवाय नन्नसूरिए 'विचारचोसठी' (रचना सं, १५४४), 'दशश्रावक बत्रीशी' (सं. १५५३), 'पंचतीर्थस्तवन' वगेरे कृतिओनी रचना करी होवानो उल्लेख मळे छे.
प्रस्तुत काव्यनो विषय जैन परंपरामां प्रसिद्ध एवा गजसुकुमालना चरित्रप्रसंगने आलेखवानो छे. १. जैन गुर्जर कविओ संपा. मो. द. देसाई, मुंबई १९२६, भाग-१, पृ. ९६; भाग-३, खंड-२ पृ. ५२५.