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चैष्णवभक्तप्रबंधचोपाई
धृत पालइ ते एकादसो, हरिवासर ध्याइ द्वादसी । करि हिंसा नई हिंडि जिमि, कहु ? ॥८॥ शास्त्रतणां लोप जे करइ, अखाद वस्तु जाणी आचरि । कहि वैष्णव, नई राति जिमि, कहु० ! ।।९।। गर्भिणी सरिशु जे विचरि पातिभेद साप्याशु करि । बाल वृद्ध उल्लंघो जिमइ. कहु ० १ ॥१०॥ 'सर्वभूतनिवासी रहइ वाशु(सु)देव' सहूइ इम कहि । ते जाणीनिं परनइ दमि, कह(हु)० ! ॥११॥ वैष्णवतणी संका नवि गणि, निर्भयपणि वैष्णवनई हणइ । मदिरापानथिउ रंगी रमि, कहु० ? ॥१२॥ वेद च्यारि उधर्या जेणि जीवायोनि नीपाई तेणि । ब्रह्मस्वरूप जाणी जे दमइ, कहु० ॥१३॥ परठइ गोकल परठइ देव अहिनसि सारि तेहनी सेव । तेहनइ भांजइ तेहनइ नामि, कहु० ॥१४॥ हणि जीव, नइ बोलइ धर्म, दयातण[उ] नवि जाणि मर्म । मनि अहंकारी, कहनई नवि नमि, कहु० १ ॥१५॥ वैष्णव वैष्णव सहू कोइ कहि, वैष्णवपणउ जय विरला लहि । जीवदयाधर्म पालइ जेह कह (हि) श्रीराम वैष्णवजन तेह ॥१६॥ सर्व भूतसिउं मैंत्री करि, शत्रु मित्र बे समवडि धरि । आप दमि परनइ नवि दमि, कहि श्रीराम वैष्णव मझ गमि ॥१७॥ अमृतवाणी मुषि उचरइ, मनसा वाचा कप[?] नवि धरि । सत्य सोच अहिनिसि रमि, कहि० ॥१८॥ वस्तु पीआरी देषी करी, अणमापी नवि लीइ हरी । थापणि नुलवि केहनी किम्हइ, कहि० ॥१९॥ एक भक्त दिनमध्ये करि, नशाभोजन सवि परिहरइ । प्रहस्तथिकु रति साइ रमि, कहि० ॥२०॥ देव - गुरु नित करीय प्रणाम, घरइ ध्यान जगदीश्वरनाम । अतीथकाल साचवीनई जिमइ, कहि० ॥२१॥