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पं. अमृतलाल भोजक
५० मी कडीमां रचना स्थल अने रचनानो मास तथा तिथि जणावीने कर्ताए पोतानु नाम जणाव्युं छे ।
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अंतम ५१मी कडीमां कविए आ वैष्णवभक्तप्रबंध भणनार-सांभळनारने निर्मल बुद्धि थवानी अने सर्व सुख-संपत्ति पामवानी शुभकामना दर्शावी छे ।
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मावदास नामना कविए रचेली तीर्थमालनी एक हाथप्रत प्राच्यविद्यामंदिर- वडोदरा-मां छे । आ मावदास अने प्रस्तुत वैष्णवभक्तप्रबंधचापाईंकार मात्र कवि भिन्न छे । तीर्थमालकार माबदासनी सूतार ज्ञाति छे अने तेणे वि. सं. १७९६ ना आसोवद आठम उपर नोम ने रविवारना दिवसे तीर्थमाल रवी छे' । मावदासकविनी हकीकत सन १९७३ ना नवेंबर मासमां प्राच्यविद्या मंदिर- वडोदरा-ना ते समये मुख्य नियामक श्री डॉ. भोगीलालभाई जे. सांडेसरा द्वारा मेळवी छे । आ सहकार बदल तेमना प्रत्ये आभारनी लागणी व्यक्त करूं छु । वैष्णवभक्तप्रबंधचोपाई
संभलि स्वामी श्रीरघुनाथ ! करूं वीनती जोडी हाथ ।
कहइ वैष्णव, आप छ ( ? ) दह रमइ कहु श्रीरामनि ते किम गमइ ? || १ ||
मनि महल, माया मुखि घरइ, वीसासी परनइ छेतरइ । सप्पा द्रोह ऊपरि जे भमि, कहु० ? ||२||
विण्हकथागुण गाइ गीत, अंबरि हीयडु, वडलइ चीत । नारि पीआरी सरिसु रमि, कहु० ? || ३ |
पूजइ देवति, करीय सनान, क्षण नवि छंडs विषयाध्यान । इणि परि तीरथ करतु भमि, कहु० ? || ४ ||
कखांबर घोती पहिरणि, सहिसनाम गीता मुषि भणि । दासी वेश्या सरिसु रमि कहु० १ ||५|| गोपीचंदन तिलक अंगी करइ, तलसीमंजरी मस्त कि घरइ । कमारगी कसंगह रमि, कहु० ? ॥६॥ उत्तम - मध्यमनि घरि जाइ, इंद्रीपरिवसि महलां थाइ । वरणावरण छांडी जे रमि, कहु० ? ॥७॥
१. " भजनथी हरी नव मले तो मावदास जमांन ॥ ३४ ॥ संवत । १७ । ९६ छनुआ पवन मने आसो मासे कृष्ण पषे तथ आठम उपरांत नोम रवीवारे: । तीर्थमालनांम ग्रंथनो कवीता मावदास सुतार ||३५|| शीषे गाये ने सांभले : रुदे राधे रूपेर : ।
क्रमे लषते आचरशे : तेहने अरसठ तीरथ घेर : || ३६ ||
कडवां: । ५ ॥ पदं ॥ २०० ॥ इती तीर्थमाला समाप्त | मावदास सकत
: ॥ श्रीरामाय नमः ॥ श्रीः || ”