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हरनारायण उ. पंड्या
नन्दिसूत्रमा प्राप्त थतां त्रण प्रकारना वर्गीकरणने आधारे पण आमांथी केटलाकनो ज खुलासो मेळवी शकाय तेम छे, बधांनो नहि. प्रज्ञापनागत वर्गीकरणना आ गुंचवाडाना आधारे एम अनुमान करी शकाव के प्रज्ञापनाना काळमां संज्ञी अने असंज्ञी जीव विषे विभिन्न विचारणाओ हनी, जेनी समग्रनीध प्रज्ञापनामा एक ज स्थळे लेवाई छे.११
प्रज्ञायनागत विचारणाओ उपरांत अन्य विचारणाओनु उमेरण काळक्रमे थतुं रह्यु हशे, जेमांनी केटलीक स्वीकार्य तो केटलीक अस्वीकार्य लागी हशे. आमांनी स्वीकार्य विचारणानी नोंध नन्दिसूत्रमा प्राप्त थाय छे. नन्दिगत त्रण प्रकारना वर्गीकरणना आधारे एम मानवू पडे के नन्दिसूत्रना काळमां संज्ञी-असंज्ञी जीवना वर्गीकरणनी बाबतमा त्रण विचारणाओ हती, जे नीचे प्रमाणे छे.
(१) हेनुवादसंज्ञा--आ संज्ञा प्रमाणे जोतां जे जीवमां अभिसंधारणपूर्विका करणशक्ति होय ते जीव संज्ञी छे. अने जे जीवमां आवी शक्ति नथी ते जीव असंज्ञी छे.१२ आ वर्गीकरण प्रमाणे कया जीवोने संज्ञी अने कया जीवोने असंज्ञी कहेवा तेनो उल्लेख नन्दिमा नथी, पण नन्दिना टीकाकारोए तेनो उल्लेख कर्यो छे. तदुपरान्त नन्दिगत लक्षणनी स्पष्टता पण करी छे. तेमणे जणाव्यु छे के जे जीव मनथी पर्यालोचन करी शके ते जीव संज्ञी छे अर्थात् ते जीव पोताना देहनु पालन करवा माटे पोतानामा रहेली करणशक्ति वडे विचार करीने आहार वगेरे इष्ट वस्तुमा प्रवृत्ति करे छे अने अनिष्ट वस्तुमा प्रवृत्ति करतो नथी. आ वर्गीकरण प्रमाणे द्वि-इन्द्रियथी संमूर्छिम पंचेन्द्रिय वगेरे जीवो संज्ञी छे अने एकेन्द्रिय, मत्त तेमज मूर्छित जीवो असंज्ञी छे.१३ भगवतीसूत्रमा असंज्ञी तरीके उल्लेखेला एकेन्द्रिय अने त्रस जीवोनो समावेश अहीं करी शकाय.४ नन्दिना टीकाकारोए भगवतीसूत्रगत ए जीवो उपरांत मत्त अने मूर्छित जीवोनो समावेश असंज्ञी जीवमां को छे.
(२) कालिकीसंज्ञा----आ संज्ञा प्रमाणे जोतां जे जीवने ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेषणा, चिंता अने विमर्श होय ते जीवो संज्ञी छे अने बाकीना जीवो असंज्ञी छे.'५ नन्दिना टीकाकारोए आ विधाननी स्पष्टता करतां का के जे जीव अवग्रहादि मतिज्ञानवाळो होय अर्थात् मनःपर्याप्तिथी युक्त होय ते जीव संज्ञी छे. अने तेम न होय ते जीव असंज्ञी छे १६ आ रीते गर्भव्युत्क्रान्तिक पुरुष अने औपपातिक देव वगेरे जीवो संज्ञी छे अने संमूछिमपंचेन्द्रिय अने विकलेन्द्रिय वगेरे जीवो असंशी छे. आ जीवोमा मनोलब्धि अल्प प्रमाणमां होय छे
(११) 'अभिधर्मकोषभाष्यम्' मां संज्ञा ए पांच स्कंधोमानो एक स्क'ध छे [१-७], संज्ञानो एक अर्थ निमित्तोद्ग्रहण थाय छे. [संज्ञा निमित्तोद्ग्रहणात्मिका । १-१०] अर्थात् कालू, पीळ, लांबु, ट्रंकु, स्त्री, पुरुष, मित्र, दुश्मन, सुख, दुःख वगेरेयी वस्तुनो निर्देश करवो ते [१-१५]. संज्ञानो बीजो अर्थ ज्ञान थाय छे कारण के संज्ञा संसारनो प्रधान हेतु छे [१२१], ते धर्मधातु छे [१-१५], ते दरेक जीवमा होय छे 'वेदना चेतना संज्ञा च्छन्दः स्पर्शी मतिः स्मृतिः। मनस्कारोऽधिमोक्षश्च समाधिः सर्वचेतसि ।' [२-२४] अने तेना छ प्रकार छे [१-१४]. संज्ञी अने असंज्ञी एम जीवना बे प्रकारोनो उल्लेख छे २-४१, २-४२, ३-५, ३-६, १-४४, ४-८५, ४-९६, ८-५. (१२) नं. सू ६९. (१३) वि. भा. ५१२, ५१३, नं. चू. ६७, नं. ह. ६९, मल. पृ० १९०. (१४) भ, सू. ७-७-४ (२९१), (१५) नं. सू. ६८. (१६) नं. च. ६६, नं. ह. ६८. .