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जैनसम्मत संज्ञा अने संज्ञी ।
हरनारायण उ. पंडया भगवती सूत्र' अने प्रज्ञापनामा संज्ञाना दश प्रकारोनो उल्लेख छे. जेम के आहार, भय, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, लेाक अने ओघ. आ दश संज्ञाओमां प्रथमनी चार संज्ञाओ मुख्य छे. कारण के ते विषे खास प्रश्न पूछायो छे. भगवती सूत्रमा पृथ्वीकायिक जीवोना वर्णनमां संज्ञा अने मन बन्नेनो उल्लेख छे. जे एम निर्देशे छे के संज्ञा ए मनथी भिन्न छे. वळी चोवीस स्थानोमां दृष्टि, दर्शन, ज्ञान अने संज्ञाने गणाव्यां छे", तेथी एम कही शकाय के संशा ए ज्ञान थी भिन्न छे. आम आ बन्ने उल्लेखो सूचवे छे के संज्ञा ए मने अने ज्ञानथी भिन्न छे.
रत्नप्रभा पृथ्वी विषेनी जिज्ञासामा आहारादि चार संज्ञा अने संज्ञी-असंज्ञी विषे प्रश्न पूछायो छे"; तेथी एवं अनुमान करी शकाय के आहारादि संज्ञाने संज्ञी-असंज्ञी साथे सम्बन्ध नथी. वळी असंज्ञी जीव तरीके पृथ्वी कायिक वगेरे पांच' अने छठा त्रस जीवोने गणाव्या छे, जेओ वेदनानु वेदन करे छे. पृथ्वीकायिक जीवोने आहारादि संज्ञा होवा छतां तेमने अहीं जे असंज्ञी कह्या छे ते एम सूचवे छे के संज्ञी अने असंज्ञी जीवना व्यावर्तक लक्षण तरीके 'बधा जीवोमां प्राप्त थती आहारादि दश संज्ञाथी अतिरिक्त' एवं कंईक अभिप्रेत छे के जेने कारणे जीवोनो संज्ञी-असंज्ञी भेद पाडवामां आव्यो छे. आ विषेनुं समर्थन प्रज्ञापनामां पण मळे छे, कारण के त्यां केटलाक पंचेन्द्रिय जीवोने संज्ञी [संज्ञिपंचेन्द्रिय अने केटलाक पंचेन्द्रिय जीवोने असंज्ञी [असंज्ञिपंचेन्द्रिय कह्या छे. संजी, असंज्ञी अने संज्ञातीतनुं वर्गीकरण प्रज्ञापनामां जोवा मळे छे ज़े नीचे प्रमाणे : जीवनो प्रकार
संज्ञी असंज्ञी नोसंज्ञीअसंज्ञी [संज्ञातीत]
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२ नैयिक, असुरकुमारथी स्तनितकुमार / ३ पृथ्वीकायिक थी चतुरिन्द्रिय सुधीना x ४ मनुष्यो ५ पंचेन्द्रियतिर्यक्योनि अने वाणव्यतर. / ६ ज्योतिषिक, वैमानिक ७ सिद्ध
उपर्युक्त वर्गीकरण- व्यावर्तक लक्षण प्रज्ञापनामा उक्तस्थळे जणाववामां आव्यु नर्था. एटलं ज नहि पण आ वर्गीकरण कदाच गुंचवाडो ऊभो करे तेवु लागे छे. संभव छे के आ कारणसर परवती आचार्योए प्रज्ञापनाना आ वर्गीकरणनो उल्लेख करवो उचित नहि मान्यो होय.
(१) भ. सू. ७-८-४ (२९५) आहार, भय, मेहुण, परिग्गह, कोह, माण, माया, लोभ, लोग, मोह. (२) प्रज्ञा० ८ मुं पद (३) भ. सू. १३-१-१ (४६९); प्रज्ञा० ८ मुं पद. (४) गोयमा, तेसिणं जीवाणं णो एवं तक्काइ वा सण्णाइ वा पण्णाइ वा मणेइ वा वइत्ति वा । भ. सू. १-३-१० (३६). (५) भ. सू. १-६-४ (५३). (६) भ. सू. १३-१-१ (४६९). (७) भ. स. ७-५--४ (२९१). (८) प्रज्ञा० २३-२७. (९) प्रज्ञा २३-२३. (१०) प्रज्ञा० ३१ में पद.