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शान्तिभाई आचार्य आम आ विभाग नीचे आवे एवा आ बे कोश अने एक रूढिप्रयोगकोश तथा पांचेक कहेवतसंग्रहने बाद करता आ क्षेत्रे पण हजी “गरीबी हटावो” कार्यक्रम सफल थयो नथी। ___ अहीं एक खास नोध लेवी घटे ते डो. पंडितना 'फोनेमिक एन्ड' मोफॅमिक फ्रिक्वन्सीझ ओफ धी गुजराती लेंग्वेझ' (१९६५) पुस्तकनी । भाषामां कया वर्णनी पुनरस्ति (फ्रिक्वन्सी) केटली छे तेनी माहिती पर भाषानी टेकनोलोजीकल विकास अमुक अंशे निर्भर छे। आ पुस्तक ए आधुनिक गुजराती भाषानी पुनरस्तिना आलेखननो कोश गणावी शकाय ।
उपर दर्शावेला आ सिवायना कोशोनो हेतु साहित्यने मदद करवानो छे ज्यारे अहीं विज्ञानने । वापरनारना संदर्भमा
पहेली नजरे जोतां आवो विभाग पाडवो ते कईक “फेशन"रूप लागवानो संभव छ । परन्तु जो आनो विचार करवामां आवे तो अमने जणाय छे के आ विभागमा कोशकार्यनां संशोधनने घणो अवकाश छे । - कोशनी रचनामां आ विभागमा अमे जे प्रकारो पाड्या छे तेनो विचार करीने कोशो रचाया होय तेवु उपलब्ध साहित्यने जोतां जणातुं नथी ।
वळी आ प्रकारोमांथो छेल्लो प्रकार "विद्वान" ने. बाद करतां अन्यमा कोश वापरवानी हजी टेव पण पडी छे के केम ते तपासनो विषय छ। विद्वाननो अर्थ अहीं "विद्याव्यासंगी व्यक्ति" एटलो ज उद्दिष्ट छ । - आवा हेतु नियत करीने थयेला कोशो होय तो ते अमारी जाणमां नथी। कईक अंशे आ विभागमा वेसे एवा "संपूर्ण वेझिक शब्दकोश' (१९३९) अने 'पायानो गुजराती शब्दकोश' (१९५६) ए वे कोशने गणावी शकाय । बनेनो हेतु पायाना गुजराती शब्दो नोंधवानो छ ।
आ क्षेत्रमा कोशरचनाने घणो अवकाश छे । खास करीने बाळक अने प्रौढोना शिक्षणना प्रश्नो छे तेमां आ दृष्टिए कार्य करीने मददरूप बनी शकाय । अर्थना संदर्भमां : ___सामान्य रीते मोटा भागना कोशो मुख्यार्थ के प्रचलितार्थ आपीने अटकी जता होय छ । आ स्वाभाविक पण छ । समग्रार्थी कोश रचवो ए घj ज विशाळ अने अत्यन्त कपर कार्य छ । वळी विद्वद्वर्गने बाद करतां बाकोनाने मुख्यार्थ अने प्रचलितार्थोथी काम चाली रहेतुं होय. छे । परंतु जो समग्रार्थी कोशनो प्रयत्न थाय तो ते ते शब्दोना इतिहास अने तेना परिवतनो विष माहिती पूरी पाडे । आ माहिती प्रजानी संस्कृतिने समजवामा अत्यन्त उपयोगी थाय।
परन्तु आ सिवाय पण आपणा समस्त कोश साहित्यमां आ भाग अत्यन्त शिथिल जणाय छ। अर्थनी दृष्टिए हजी आपणा कोशो प्रारंभिक दशानां ज छ । एकभाषी कोशोमां भगवद्गोमंडल सिवायना बधा ज कोशो आ दशाना छे तो भगवद्गोमंडलमां अर्थनो अतिरेक, अचोकसाइ अने गुजरातीमां प्रचलित न होय तेवो अर्थच्छायाओनी हारमाळा ए अपवाद करतां नियम वधारे होय तेम लागे छे । आ कोश पर कार्य करी रहेला श्री के. का. शास्त्रीजी, आ वातने पुष्टि आपशे एम अमारु मानवु छ ।