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________________ गुजराती भाषामां शब्दकोशनी प्रवृत्ति "ओल्ड वेस्टर्न राजस्थानी" (के आनां हिन्दी, गुजराती अनुवादो) (८) फागु, रास, आख्यान, छंद, ऊझj, इत्यादि जेवू साहित्य । आ बधा प्रकारना साहित्यनो उपयोग करवामां आवे ते पहेलां आनी पूर्वभूमिका रूपे शास्त्रीय वाचनाओवाळी टेक्स्ट तैयार करवी अनिवार्य बने छ । नूतन गुजरातीना संदर्भमां प्राप्य सामग्री पर आपणे वर्गीकरण (१) मां विचार कर्यो छे । वर्ण्य विषयना संदर्भ मां : आ क्षेत्रने कोई मर्यादा होई शके नहीं । जीवन समस्तने आवरी लेता विषयो आ शीर्षक नीचे आवी शके तेम छतां अमुक क्षेत्रोनी अमुक क्षेत्रो करतां अग्रता जे ते भाषासमाजना मानसमां पडी होय छे । उ. त. बे कोश रचवामां अग्रताना धोरणे पसंदगी करवानी होय. तो साहित्यना शब्दकोश करतां गाळोना कोशने सामान्यपणे पहेली पसंदगी नहीं मळे । आ धोरणेथी जोतां पण गुजरातीमां विविध विषयोने आवरी लेवामां कोशोनी संख्या खूब अल्प गणाय । जे कई कोशो उपलब्ध छे तेनी संख्या मांड दोढ डझन थवा जाय छे । अने आ पण १९१० थी मांडी १९५० ना गाळाना । १९५० पछीना गाळामां “साहित्यना कोश" नी संवर्धित आवृत्ति (१५६८) ने बाद करतां कोई गणनापात्र कोशकार्य थयु होवार्नु जाणवामां नथी । नवां कामोमां तो आ विषयमा चरोतर एज्युकेशन सोसायटी (आणंद) एक "बृहद् साहित्य कोश' तैयार करी रही छे तेने गणावी शकाय । आ क्षेत्रमा हजी संस्कृति, साहित्य, कळा, राजकारण, भारतीय विद्याओ, पुरातत्त्व, इतिहास, समाजशास्त्रो, आयुर्वेद, ज्योतिष, मानवशास्त्र, गणित, इत्यादि जेवा अत्यन्त प्राचीन विषयोने पण आवरी शकायां नथी तो पछी दास्तरीविद्या, गांधीविचार अने सर्वोदय, यंत्रविद्या, समाजकार्य अने शांतिसंशोधन, जेवा काळनी दृष्टिए आधु नेक कहेवाय तेवा विषयोनी तो वात ज शी करवी ? आपणी साधनसामग्री अने मानवशक्तिनो विचार करीने आ क्षेत्रना पण शक्य तेटलां अने पूरा करवानी गणतरीए पहोंची वळाय तेटलां कामो उपाडवां जोईए । वर्णना संदर्भमां : आ विभागने अमे हेतुपूर्वक बे भागमां बहेंची नाख्यो छे । एक ते शब्दस्तरीय विभाग अने बीजो शब्दोपरी स्तरीय । प्रथम विभागमा जे "शब्द" सुधीमां समाई शके तेनो विचार कर्यों छे अने बीजा विभागमां "शब्द"थी उपरना स्तरनो। आ बीजा विभागमा अमे मुहावरा, रूढिप्रयोगो, अनुप्रास रचनाओ अने भाषाना प्रयोगो तथा कहेवतो वगेरेनो समावेश कर्या छ । ___आ संस्कृत प्रणालिनो कोश गणावी शकाय। कवियो, साहित्यकारो, वगेरेने पोतानी रचनाओमां छंद, प्रास वगेरेमो मददरूप थाय ए. रीते भिन्न भिन्न वर्णो प्रमाणे गोठवीने आचा कोशो रचाता । गुजरातीमां "कोशावळी” कोश १३नो (१८६५) ए आ प्रकारनो पहेलो प्रयास गणाय । आ पछीथी आ पद्धतिए रचायेला अने कोशावळीना छेल्ला खंडनी असरवाळा "गुजराती भाषानो अनुप्रास शब्दकोश” (१९५१) ने आवो बीजो कोश गणावी शकाय । संबोधि ४.१
SR No.520754
Book TitleSambodhi 1975 Vol 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages427
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size30 MB
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