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________________ गुजराती भापामां शब्दकोशनी प्रवृत्ति आपणे जोईए त्यारे ए स्तर पण भाषा समस्तना भागरूप छे अने तेनो भेद आपणे एक व्यवस्था माटे ऊभो कर्यो छे ते वे मुद्दाओ स्मरणमा रहेवा जोईए । आ दृष्टिए शब्द ए पण समस्त भाषाना एक स्तरनो भाग मात्र छ । शब्दकोशनो रचयिता आ स्तरने छूटो पाडीने जुए त्यारे भाषा समस्त पर तेनी नजर होवी जरूरी छे । आ वातने ध्यानमा लईने आपणे "शब्दकोश" नी समजूति आपवी होय तो कईक आ प्रकारनी आपी शकीए : अ. शब्दकोश ए भाषाना कोईपण प्रकारना शब्दोनी यादी छे । ब. ॥ यादी ते भाषाना घटकोना एक स्तरनी ज द्योतक छे, समस्त भाषानी नहीं। क. यादी कोईपण प्रकारनी निश्चित अने एकवाक्यतावाळी व्यवस्थायुक्त छ । ड. यादीनो प्रत्येक शब्द जे ते भाषामां के बीजी कोईपण भाषामा समानार्थी शब्द के समजूति अथवा आ बंने सहितनो होवो घटे छे । शब्दकोशनी आ सर्वसामान्य समजूति थई । अने आ समजूति प्रमाणे जोतां गुजराती भाषामां उपलब्ध शब्द अंगेनो सामग्रीनी आशरे सवासो जेटली संख्या "शब्दकोश" नीचे समाई जाय । हवे आ सामग्रीनो व्यवस्था पूरता ऊभां करेलां वर्गीकरणोना संदर्भमा विचार करीए । एकभाषी शब्दकोश : __ आ कोशनी संख्या लगभग ३० जेटली गणावी शकाय । आमां नोंधपात्र पांच' शब्द. कोशो छ । आ सिवायना अन्य २५ जेटला तो एक या बीजा प्रकारनी आ कोशोनी असर तळेनां छे । आ पांच कोशनी रचना एक सैकामां वहें चायेली छे । ई. स. १८६१ मां २५००० उपरांत शब्दो साथेनो “नर्मकोश" आपणने मळ्यो । त्यारबाद १९२३ मां (कोशनु कार्य तो १९१२ थी शरू थइ गयुं तुं) आपणने गुजरात वर्नाक्युलर' सोसायटी (आजनी गुजरात विद्यासभा) नो “गुजराती भाषानो कोश” पूरेपूरो प्रसिद्ध थयेलो मळी जाय छे. आ' पछी थी गणनापात्र कही शकाय तेवो पटेल लल्लुभाईनो "गुजराती शब्दकोश' (१९०९ अने बीजी आवृत्ति १९२५) मळे छे । आ कोशने आगळना बे मुख्य कोशनी मदद मळी छ । अहीं सुधी कोशोमां जोडणीनी एकवाक्यता प्रवेशी नथी । ई.स. १९२९मां बहार पडेला गुजरात विद्यापीठना “जोडणी कोश" थी गुजराती कोशमां जोडणीनी अराजकतानो अंत आवे छे । गुजरात विद्यापीठनो आ कोश पछीथी तो “सार्थ जोडणी कोश' बनी ने १९६७ सुधीमां तो पांच आवृत्तिओ पामे छे । गुजरातीमा जोडणी विषयक अराजकतानो आ कोशथी अंत आवे छे । पांचमो तचक्को आपणने "भगवद्गोमंडल' कोशमां जोवा मळे छे । गोंडलना राजवी सद्, भगवतसिंहजीए मोटी रोयल साइजमां ९ भागो आ नामे बहार पाडया छे । ई.स. १९४४ १ नर्मदने वाचनमाळाना अघरा शब्दो समजाववा माटे कोश जेवू कार्य करवानुं हतुं । संभव छे के आ कार्यना परिणामरूपे एक मोटो कोश करवानो विचार आव्यो होय । अने आना परिणाम रूपे 'नर्मकोश' रचायो होय । संबोधि ४.१
SR No.520754
Book TitleSambodhi 1975 Vol 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages427
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size30 MB
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