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नरोत्तम पलाण बन्यो, महाभारतनी एक आख्यायिका इन्द्र तथा स्कन्दनो संघर्ष निरूपे छे. आपणे अनुभवी शकीए छीए के आ समये उच्च वर्गना देवो साथे, स्कन्द जेवो निम्न वर्गनो देव संबंधमां आवी रह्यो छे. --
__ अने परिवर्तन अनिवार्य बन्युः महाभारतकार भगवान श्रीकृष्णना मुखमा" "सेनापतिओमां स्कन्द है छ." एवं वचन मूको स्कन्दनो स्वीकार करावे छे ! हवे देवपरिवारना उच्च आसने स्कन्दनो अभिषेक थयो, दक्ष प्रजापतिनी कन्या देवसेना तेने परणाववामां आवी अने लगभग दरेक बाबतमा बने छे तेम पुराणकारोए स्कन्दनी पण अनेक माहात्म्यकथाओ जोडी काढी, जेमा प्रमुख देवो साथेनो तेनो संबंध प्रस्थापित थयो ! .. ___स्कन्द आखा भारतवर्षमा पूजानो अधिकारी बन्यो. ई.स. नी शरूआतमां आ पूजा सर्वस्वीकृत अने व्यापक बन्याना पुरावाओ प्राप्त छः मथुरा म्युझियममां आवेली कुषाणकालीन स्कन्दमूर्ति हाल भारतमां प्राप्त सौथी प्राचीन मूर्ति छे. ए तो स्पष्ट छे के कुषाणकाळ (ई. स. पूर्व ४८ थी ई. स. २२०) मां स्कन्द-पूजा अधिक प्रचारमा हती. सम्राट कनिकना पौत्र हुविष्क ई. स. १०६ ना सिक्काओ उपर स्कन्दनी आकृति अंकित थयेली छे. मथुरा म्युझियममां संग्रहायेली पालीखेडा अने मधुवनमांथो प्राप्त स्कन्दमूर्तिओ पण कुषाणकालीन छे. कुषाणोना अंत समये अने गुप्तोना उदय वखते ई. स. नी बोजी त्रीजी सदीमां रोहतकना यौधेय राजाओना इष्टदेव तरीके कार्तिकेय पूजास्थाने हतो. यौधेय राजाओना सिक्काओ उपर हाथमां भालो लईने उभेल छ मुखवाळा युद्धना देवता मनाता स्कन्दने जोई शकाय छे. महाभारत २.३ २.४५ मां पण यौधेयोना रोहितक प्रदेशने कार्तिकेयनो प्रिय प्रदेश कहेवामां आव्यो छे. _ गुसकाळमां स्कन्द-यजानी परम्परा विकासोन्मुख छे. स्कन्दनुं स्वतन्त्र मन्दिर बन्यानो प्रथम आभिलेखीक पुरावो आ समय दरम्यान आपणने प्राप्त थाय छे. पश्चिम पाकिस्तानना एबटाबादथी प्राप्त ई. स. ३४४ नो, हाल लाहोर म्युझियममां आवेलो शिलालेख 'कुमारस्थानम्' बंधायानो निर्देश करे छे. गुप्तवंशना कुमारगुप्त १ला (ई. स. ४१५-४५५) ना दिलमाइ (उत्तर प्रदेश) ना शिलालेखमां पण 'स्वामि महासेनना आयातन' नो निर्माणविधि थयानो उल्लेख छे. कुमारगुप्त १ लानी सुवर्ण मुद्राओमां पाछळना भागे मयूर उपर बेठेला 'कुमार'नी ३. महाभारत, वनपर्व, अध्यायः २२७ १. "पतंजलीना मते स्कंद एक लौकिक देवता छ'-'भारतीय संस्कृति कोश' खंडः २ पृ २७१ ५. 'श्रीमद् भगवद् गीता अध्यायः १० लोक २१ ६. आ मूर्ति नीचे ब्राझीलिपिमा लखायेलो लेख छे, जेमां शक संवत ११ अथवा ३१ ...चाय छे. 'शक संवत' सम्राट कनिष्कना राज्यारोहण वखते-ई. स. ७८ मां शरू थयार्नु
मनाय छे. अतः आ मूर्ति ई. स. ८९ नी छे अथवा ई. स. १०९ नी छे. श्रीकृष्णदत्त वाजपेयीः 'मथुरा' (पृ. ३२) ई. स. ८९ जणावे छे ज्यारे श्री वासुदेव शरण अग्रवाल
'मथुरा कला' (पृ.७६) ई.स. १०९ (कुषाण संवत् ३१) जणावे छे. ७. धी. डी. सी. सरकार-Studies in the Riligious Life of Ancient and
Medieval India" पृ० १०५-११० ८. आकिमोलोजिकल सर्वे ओफ इन्डिया, ग्रंथः ११ (ई. स. १८८०)