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गुजरातमांथी लुप्त थयेली स्कंद-पूजानो एक अवशेष
नरोत्तम पलाण दक्षिण-भारतमां आजे प्रचलित स्कन्द-पूजा शैवमतनी एक शाखा मनाय छे पण स्कन्दपूजानो इतिहास एनाथी भिन्न अने रसिक छे. शैवमतना वटवृक्षमां एक शाखा मनाती स्कन्द-पूजा, शैवमतमांथो ऊगी नीकळेली नथी पण शैवमत साथे कलम थयेली शाखा छे ! स्कन्द-पूजा एना मूळमां शव नथो तेम स्कन्द, शिवपार्वतीना पुत्र पण नथी ! भारतवर्षमा थयेला देवताओना क्रमशः विकासमां स्कन्द पण धीरे धीरे आगळ आवी शैव साथे एक मत थई हाल सामान्यतः शिवपार्वतीना पुत्र तरीके ओळखाय छे अने दक्षिणमां तो 'दिव्य शिशु' तथा 'पूर्ण आनंद तत्त्व' तरीके तेनी प्रतिष्ठा थयेली छे.
वास्तवमा स्कन्द 'बाळकोर्नु स्कन्दन करनारो' दुष्टग्रहोनो समूह हतो,' संभवतः तेनी संख्या छनी होवाथी घडानन' एवं स्कन्दनुं नाम आवेल छे.
सुश्रुतना उत्तरतन्त्रमा 'नमः स्कन्दाय देवाय ग्रहाधिपतये नमः ।' एवा मन्त्रथी स्कन्दनो बालग्रह तरीके परिचय आपबामां आव्यो छे. 'भगवान् देवो धूर्त:' एवं कही अथर्ववेद तथा स्मृतियो स्कन्दने बलि चडाववानो उल्लेख करे छे श्री वासुदेव शरण नोंधे छे:२ "मूल रूपमा स्कन्द पिशाचगणमांनो एक गण हतो, पाछळ थो रुद्र साथे तेनो संबंध थयो, पछी अग्नि अने इन्द्रनो ते जोडीदार बन्यो अने छेल्ले देवताओना सेनापति तरीके तेनी गणना थवा लागी ।" अथर्ववेद, रामायण तथा महाभारत स्कन्दने अग्निपुत्र कहे छे. स्कन्दनुं 'स्वाहेय' नाम माता 'स्वाहा' (अग्निपत्नी) उपरथी आवेलुं छे. महाभारतमां पछीथी उमेरायेला भागोमां अने पुराणोमां महादेवना पुत्र तरीके स्कन्दने स्थान मळ्युं तथा तारकासुरना वध अर्थे शिवपार्वतीथी 'कुमारसंभव' थयानी कथा, कालिदासना हाथे काव्यमय बानीमा व्यक्त थई !
। 'बाळकोनो नाश करनार स्कन्द छे' एवी भीतिथी समाजना नीचला वर्गमां स्कन्द-पूजानी शरूआत थई, आ स्कन्द धीमे धीमे शक्तिशाळी देव बनवा लाग्यो, जे मात्र कोई एक स्था. निक समाज पूरतो मर्यादित हतो ते विकास अने विस्तार पामी इन्द्र जेवा प्रमुख देवतानो हरीफ
१ महाभारत, वनपर्व, अध्याय २३० मां स्कंदना शरीरमांथी मानव-शिशुने खाइ जनारो रौद्र रूप ग्रह उत्पन्न थयो: 'रौद्ररूपोऽभवद् ग्रहः ॥ २५ ॥ आ ज अध्यायमा पूतना तथा रेवतीनो 'बाळकोने महान कष्ट आपनार ग्रह' तरीके उल्लेख छे, तेमज बाळ कोनुं मांस जेने प्रिय छे ते दिति, गर्भमा रहेला शिशुनुं जे भक्षण करे छे ते शकुनिग्रह-विनता, 'सरमा' नामनी कुतरानी माता जे गर्भस्थ बाळकनुं हरण करे छे वगेरे सौने 'स्कंदग्रह' कहेवामां आव्या छे. 'सर्वे स्कन्दग्रहा नाम ज्ञेयः' ॥१३॥ २. अ--'पाणिनिकालीन भारतवर्ष' पृ० ३४६ ___ब-'प्राचीन भारतीय लोकधर्म' पृ० ४५ थी ६२
संबोधि ४.१