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________________ कृष्णकुमार दीक्षित श्यक है। ब्रह्म का कन्चना का प्रथम अवतारणा प्राचीन उपनिषदों में हुई थी और अम्लता गया सिद्धान्त यह निश्चित हुआ कि ब्राह्म बाह्य जड़-जगत् का संचालक इसी प्रकार है जिसे आत्मा प्राणि-शरीर का। लेकिन यह तो रही शान्त की बात, सिद्धान्त कदाचित् यह रहा कि ब्रह्म एक चेन तत्त्व है उसी प्रकार से आत्मा क चेतन तत्त्व है। अब प्रश्न उठता है कि जिस प्रकार मात्मा द्वारा संचादिल शरीर आत्मा से स्वतंत्र अस्तित्व रखता है क्या उसो प्रकार ब्रह्म द्वारा संचालित बाल जड़ जगत् बन्न से स्वतंत्र अस्तित्व रखता है । जब मुंडकार्यानपद ( १.१.७) में कहा गया कि ब्रह्म से जगत् उत्पत्ति उसी भातिका ज ड़ा से जाले की, पृथ्वी से जड़ियों की, शरीर से केश लोम को तब तो मा प्रतीत हुआ कि माय जड़ जगत् ब्रहा से पृथक स्वतंत्र अस्तित्व नही ना. लोक । जब वेताश्वतर ( १.४) में कहा गया कि प्रकृति माया रूप है तथा ब्रत माया रचने वाला तो ऐसा प्रतीत हुआ कि बाह्य जड़ जगत् का नाम से सुधक स्वतंत्र अस्तित्व है । यह सच है कि नवीन उपनिषदों की प्रस्तुत दानी मान्यता प्राप्त बुंधली हैं लेकिन यहाँ दिखाई जा रहो कठिनाई कदाचित् इन मान्यताओं की वास्तविक कठिनाई है। मोक्षधर्मप्रकरण में भी कठिनाई का स्वरूप नत्वत: यहा है लेकिन वहां चर्चा अत्यन्त विस्तृत होने के कारण ग्रन्थकारों का मूल आशय उतना बुन्धला नहीं। मोक्षधर्मप्रकरण में सृष्टि-प्रलय का वर्णन अनेक बार हुआ है और इन वर्णनों में मारके के परस्पर भेद तक हैं लेकिन महत्व की बात है कि इन वर्णनों की मौलिक मान्यताओं को समझ लेना । यहां यह मानकर चला गया है कि काल चक्र को मोटे तौर से ब्राह्म-दिन तथा ब्राह्ममात्रि में बाटा ना सकता है-जहां ब्राह्म-दिन का प्रारंभ सृष्टि से तथा श्राम गाँव का प्रारंभ प्रलय से होता है । इस सम्बन्ध में 'ब्राह्म' का अर्थ 'ब्राह्म' सम्बन्धों करना विशेष उचित रहेगा ('ब्रह्मा सम्बंधी' करना नहीं) क्योंकि यहाँ दिन का प्रारम्भ ब्रह्म के जागने से तथा रात्रिका प्रारंभ ब्रह्म के सोने से होता है। और इस प्रकार सोने जागनेवाले ब्रह्म को नारायण नाम भी दिया गया है । लेकिन कल्पना यह है कि ब्रह्म अथवा नारायण सृष्टि-शंखला की पहली कड़ी भूत तत्त्व को जन्म देकर निवृत्त हो जाता है । यह पहली कड़ी भूत तत्व अपाली कड़ा भूत तत्व को जन्म देता है और इसी प्रकार चलते चलते सम्पूर्ण शवला तैयार हो जातो है । इस शंखला में बाह्य जड़ जगत के घटकों का भी मावा है तथा प्राणि-शरीरों के घटकों का भी (जहां शरीर-घटकों में
SR No.520754
Book TitleSambodhi 1975 Vol 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages427
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size30 MB
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