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________________ मोक्षधर्मप्रकरण की दार्शनिक चर्चा और इसी सिद्धान्त को 'ब्रह्मात्मैक्यवाद' का नाम दिया जाता है । याज्ञवल्क्य के अनुयायी नवीन उपनिषदों के रचयिताओं के सामने समस्या थी याज्ञवल्क्य के इस सिद्धान्त को तकेंपुरस्सर व्यवस्थित करने की । इस संबंध में सब से बड़ा प्रश्न यह था कि पुनर्जन्मचक्र में फंसे आत्मा को पुनर्जन्म चक्रातीत ब्रह्म से एकरूप किस अर्थ में माना जाए। जहां तक शरीर से पृथक् आत्मा का अस्तित्व सिद्ध करने की बात थी वह तो अन्यथा भी संभव थी लेकिन इस प्रकार जिस आत्मा का अस्तित्व सिद्ध किया गया हो उसे बाह्य जड़-जगत का संचालक भी मानना सरल न था । अनुमान किया जा सकता है कि सांख्य दार्शनिकों ने शरीर से पृथक् आत्मा का अस्तित्व तर्कपुरस्सर सिद्ध करने का काम ही अपने हाथ में लिया था और इस प्रसंग में उन्होंने कतिपय सुनिश्चित मान्यताएं स्थापित की यह बतलाते हुए कि शरीर के घटक रूप तत्त्व कौन कौन से हैं तथा आत्मा का ठीक स्वरूप क्या है । इस नाते सांख्य दार्शनिक ब्राह्मण-परम्परा के प्रथम व्यवस्थित दार्शनिक सिद्ध हुए जिनके निष्कर्षों का उपयोग अपने अपने समय में तथा अपने अपने उद्देश्य से नवीन उपनिषदों तथा मोक्षधर्मप्रकरण के रचयिताओं ने किया । कहने का आशय यह है कि बाह्य जड़-जगत् , शरीर तथा आत्मा के स्वरूप के संबन्ध में जिन मान्यताओं को सांख्य दार्शनिकों ने दर्शनविशेषज्ञों की हैसियत से पल्लवित किया उन्हें ही प्रायः ज्यों को त्यों ले लिया नवीन उपनिषदों के रचयिताओं ने अपने ईश्वरवादसंवलित ब्रह्मवाद के समर्थनार्थ तथा मोक्षधर्मप्रकरण के रचयिताओं ने अपने ब्रह्मवादसंवलित ईश्वरवाद के समर्थनार्थ । सांख्य दार्शनिकों की मूल मान्यताएं क्या रही होंगी इस सम्बन्ध में नवीन उपनिषद् अपेक्षाकृत कम प्रकाश डालते हैं लेकिन मोक्षधर्मप्रकरण इस सम्बन्ध में भारी सहायक सिद्ध होता है । हां, एक बात प्रायः सुनिश्चित हैं और वह यह कि इन मान्यताओं में 'ब्रह्म' अथवा 'ईश्वर' की कोई भूमिका ,न रही होगी । जो भी हो, नवीन उपनिषदों तथा मोक्षधर्मप्रकरण की दार्शनिक मान्यताओं को सबसे अधिक अस्पष्टता ब्रह्म तथा ईश्वर से सम्बधित प्रश्नों को लेकर ही है; नवीन उपनिषदों की दार्शनिक मान्यताओं का परीक्षण इस समय प्रसंगोपात्त नहीं, लेकिन मोक्षधर्मप्रकरण की दार्शनिक मान्यताओं के सम्बन्ध में कुछ कह दिया जाए। मोक्षधर्मप्रकरण की मौलिक दार्शनिक मान्यता को हमने 'ब्रह्मवादसंवलित ईश्वरवाद' नाम दिया है । इस शब्दावली का ठीक अर्थ समझना आव
SR No.520754
Book TitleSambodhi 1975 Vol 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages427
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size30 MB
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