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________________ सिद्धनामकोशः बाह्मणपरंपरामां पण 'शिवसहस्रनामस्तोत्र,' गणेशसहस्रनामस्तोत्र,' 'अम्बिकासहस्रनामस्तोत्र,' 'विष्णुसहस्रनामस्तोत्र' आदि अनेक सहस्रनामस्तोत्रो रचायेलां छे. महापुरुषोनु योगबल ज एबुं होय छे के तेमना हाथे दोरायेली रेखाओ पण माणसने सिद्धिदायक यन्त्र काम आपे. अने तेमना अंतरनी ऊमिथी रचायेलां स्तोत्रो तेना पाठकने आ लोक तथा परलोकमां सुख-शांति आपे ज. प्रस्तुत 'सिद्भसहस्रनामकोश' तेवा प्रकारनी रचना छे. आ हकीकत कर्ताए पण उपान्त्य लोकमां जणावी छे. प्रस्तुत सिद्धनामकोशने दस प्रकाशमां पृथक्कृत करीने ग्रन्थकारे तेना दस विभाग दव्या छे. एकथी नव सुधीना प्रत्येक प्रकाशमां 'सिद्ध' शब्दना पर्यायरूप सो शब्दोने अने अतिम दसमा प्रकाशमां एक सो आट शब्दोने संगृहीत कर्या छे. आ रीते आ कोश 'सिद्ध शब्दना १००८ शब्दोनो संग्रह छे. जेम सुप्रसिद्ध आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरिए महाराजा कुमारपालदेव माटे रचेला वीतरागस्तोत्रना प्रत्येक विभागना अन्तमां 'श्रीकुमारपालभूपालसुभूषिते' लख्यु छे तेम प्रस्तुत सिद्धनामकोशना प्रत्येक विभाग-प्रकाशना अन्तमां आवेली पुष्पिकामां "सा "पनजी' सुश्रषिते" लखेलुं छे. आथी जाणी शकाय छे के प्रस्तुत सिद्धनामकोशनी रचना, राजनगर (अमदावाद) वास्तव्य संघमुख्य रनन शाह ना पुत्र संघमुख्य पनजी शाहना माटे थएली छे, जुओ प्रत्येक प्रकाशना अन्तनी पुष्पिका, पनजी शाहना पिताना नामनो उल्लेख दसमा प्रकाशना अन्तनी पुष्पिकामां छे. प्रत्येक प्रकाशना अंतमा आवती पुष्पिकार्मा आ कोशने 'सिद्धनामकोश'ना नामथी ज ज उल्लेख्यो छे तेथी में आ नामने ज मुख्य गण्यु छे. आम छतां 'य'० प्रतिमां . दसमा शतकनी पुष्पिका पछी समग्र रचनाना अंतने सूचवती 'सम्पूर्णमिदं सिद्धसहस्रनामप्रकरणम' आ पुष्पिकाना आधारे आ कोश- बीजु नाम 'सिद्धसहस्रनामप्रकरण' पण ग्रंथकारने अभिमत छे. ग्रन्थकारनो नामोल्लेख आवे छे ते सर्वान्तिम शार्दूलविक्रीडित छंद सिवाय समन रचना अनुष्टुप् छंदमां छे. . प्रथम प्रकाशना त्रीजा श्लोकथी दसमा शतकना बारमा श्लोक सुधीमां सिद्धनां १००८ नाम छे प्रथम श्लोकमां-'जेमना प्रणिधानथी इन्द्रसंबंधि श्रीनी प्राप्ति, ए तो आनुषंगिक फल छे पण मुख्य फल तो महोदय=सिद्धिनी प्राप्ति छे एवा सिद्धर्नु अमे ध्यान करीए छीए" एम जणाव्युं छे. अने बीजा श्लोकमां-"सिद्धनां १००८ नामनु स्मरण, ए सज्जनोने शरणरूप छे तथा सर्व मंगलोमां श्रेष्ठ मंगलरूप छे." एम जणाव्यु छे. दसमा शतकना बारमा श्लोक पछीना प्रथम श्लोकमां-“जेओ प्रभातमा जागरूकपणे आ . एक हजार आठ सिद्धनामनो पाठ करे छे तेओ वारं वार स्वर्गनां सुख भोगवीने सिद्धि मोक्ष ने पामे छे, एमां संशय नथी." एम जणावीने सिद्धनामकोशना पाठनु माहात्म्य सूचव्यु छे. अने अंतिम शार्दूलविक्रीडितछंदमां कर्ताए पोतानो परिचय आ प्रमाणे आप्यो छे-"गणोना समूहथी स्वच्छ अने सामर्थ्य गा धामरूप, श्रीविजयदेवसूरि सुगुरुना गच्छमां श्रेष्ठ सामर्थ्यने पामेला जीतविजय नामना प्राज्ञ पुरुष छे..तेमना गुरुभाई अने ज्ञानिओमा श्रेष्ठ एवा नय
SR No.520754
Book TitleSambodhi 1975 Vol 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages427
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size30 MB
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