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________________ ११ . महोपाध्यायश्रीयशोविजयगणिसमुञ्चितः वेजयजीना बालक-शिष्य यशोविजय नामना मुनिए आ [सिद्धनामकोशरूप] किंचित् तत्त्वने का छे." नहोपाध्याय श्रीयशोविजयजी जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक परंपरामां आजथो २८८ वर्ष पूर्वे, भारतना मूर्धन्य विद्वानो अने संतोनी आगली होळमां मनायेला न्यायविशारद महामहोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी महाराजना जन्मसंवत विषे जुदां जुदां विधानो थयां छे. ज्यारे तेमनो निर्वाणसंवत १७४३ छे, एमां खास मतभेद नथी. निर्वाणसंवतना संबंधमां प्रसिद्ध विद्वान प्रो० श्री हीरालाल र० कापडियाए वि० सं० १७४५ने प्राधान्य आप्युं छे, अने ते उ० श्री यशोविजयजी कृत 'प्रतिक्रमणहेतुगर्भसज्झाय'ना रचनासंवतना “युग युग मुनि विधु" पाठनो अर्थ वि० सं० १७४४ मानीने. पण प्रो० कापडियाना विधान पछीना वर्षीमां पूज्यपाद आगमप्रभाकर मुनिवर्य श्री पुण्यविजयजी महाराजने 'प्रतिक्रमणहेतुगर्भसज्झाय'नी वि० सं० १७४३ मां लखायेली प्रति मळी छे, आथी हवे प्रस्तुत निर्वाणसंवत १७४३ मानवामां आपत्ति नथी.. उ० श्री यशोविजयजोना जीवन अने कवननो परिचय अनेक विद्वानोए विस्तारथी आपेलो होवाथी अहीं ते सबंधमां प्रो० कापडिया रचित 'यशोदोहन' ग्रंथ तथा ५० पू० पं० श्री यशोविजयजी महाराजे संपादित करेला अने तेमनी प्रेरणाथी संपादित थयेला उ० श्री यशोविज जो रचित ग्रंथो जोवानो भलामण करूं छु. आ ग्रंथो 'यशोभारतीप्रकाशन' तरफथी प्रकाशित यया छे. उच्चारादिना कारणे जेमने संस्कृत भाषा अघरी लागती होय तेवा धर्माभिमुख वर्गनी अभ्यर्थनाथी के विशेष उपयोगितानी दृष्टिए सर्वसाधारण लोकभाषामा 'सिद्धसहस्रनामवर्णनछंद' नी रचना पण उ० श्री यशोविजयजीए करी छे. आ छंदनी संपूर्ण प्रति उपलब्ध थई नथी. जे भाग उपलब्ध छे तेनुं प्रथम प्रकाशन 'श्रीमद् यशोविजयोपाध्यायविरचित गूर्जरसाहित्यसंग्रह' नामना ग्रंथमां थयु छे, जुओ तेनुं १३३ मुं पृष्ठ प्रकाशक बावचंद गोपालजी-मुबई. आना आधारे, जैनधर्मप्रसारक सभा (भावनगर) तरफथी प्रसिद्ध थयेली 'अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय' नामनी पुस्तिकामां आपेलां विविध स्तोत्रोनी साथे आ 'सिद्धसहस्रनामवर्णन छंद'ने पुनः मुद्रित कर्यो छे. आ पुनः मुद्रणमां, प्रस्तुत छंदना कर्ता उ० श्री यशोविजयजी हशे के केम? एवी शंका जणावी छे. एनी सामे 'यशोदोहन' ग्रन्थमां प्रो० कापडियाए प्रस्तुत छंदना कर्ता 30 श्री यशोविजयजी केम न होई शके ? तेम जणाव्युं छे. प्रो० कापडियाना आ विधानने प्रस्तत सिद्धनामकोश' पुष्टि आपे छे. प्रसिद्ध थयेला 'सिद्धसहस्रनामवर्णनछंद'मा एक हजार नाम नथी ए बराबर, पण तेना प्रारंभमां मङ्गलाचरण नथी तेथी अनुमान करी शकाय के 'सिद्धनामकोश' नी जेम 'सिद्धसहस्रनामवर्णनछंद'मां पण एक सो के तेथी वधारे शब्दोना समुच्चयरूपे विभागो कर्या होय जेमांनो अन्तिम विभाग प्राप्त थयो छे, जे अहो जणाव्या प्रमाणे मुद्रित थयो छे. . प्रस्तुत कोशना संपादन कार्य माटे पोताना ग्रंथसंग्रहनी हस्तलिखित प्रति उदारभावे उपयोग करवा माटे आपी छे ते बदल पूज्यपाद आगमप्रज्ञ आचार्य भगवंत श्रीविजयजंबूसूरी
SR No.520754
Book TitleSambodhi 1975 Vol 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages427
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size30 MB
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