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त भुंगल - मद्दल - संख - सरे गयणंगणि गर्जति । मग्गण- बंभण भट्ट - मिसिं ददुर मोर रसंति ॥९॥ सेयंबर - सुणिवर - मिसिहिं धवलय चहुदिसि कित्ति | लोहरि संघु आवियर पढन पाणइ झति ॥ १० ॥ त नहर - गोगासर - पहिहिं कोटि हिसार पहुत्तु । सरसा-पट्टण संधु तर्हि तिहि आवियर बहु ॥ ११ ॥ त छदंसण पोषइ सुपरे ठामि ठामि बहु भक्ति । बहादुरपुर आवियउ नयणागरु संघपत्ति ॥ १२ ॥ त पइसारउ उच्छवि करए नयरलोड वित्धारि । पंच सह गडयहि तहिं जिण सासण-मज्झारि ॥१३॥
|| घात || अन्न दिवसिहि, अन्न दिवसिहि मेलि परिवारु
काजु करिव भणिय भाव भगति वीनवइ संघपति देवालय थपियउ सुहमुहुत्ति सिरि-पढम-जिणपति भट्टिय यरह आदि करे पहुतउ नयरि हिसारि नयणागरु तहि आवियर बहादुरपुरह मझारि ||१४||
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तृतीय भाषा
नयरि बहादुरपुरवरिहिं |
खेमा गूडर ताणी खान दिलावर - मानू ए लाघउ नयणइ बहु परिहिं ॥ १ । उत्सव करइ बहूतू ए विक्रम चउद गुणासियड़ | मासि वसंत वइसाखी ए भृगुवासरि तिथि दसमीए ॥२॥ सासणदेवि पसाए संति पुष्टि करि विधिसहिय । मंगल गायहिं नारी ए अयहव सूहव गहगहिय || ३ || पंच सबद विसथारी ए वादित्र वाजई महुरसरे चतुर - नगर - नर-नारी ए संघपति - जयजयकार करे ||४|| संघविणि अनु संघपत्ति ए संघु चतुव्बिंधु मेलि करे सुह लगनिहि सुमुहुत्तीए तिलकु कियउ धनु धनु जंपर राया ए संघपति अतिहि सुहावणउ जेल्ही दियह असीसा ए चंभी लीयइ भामणउ || ६ ||
मुनीसरसुरे ||५||