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जेमणवार विसाला ए संघपति नयणइ सुपरि किय लोय भणइ जयकारू ए गुजरिवरि जगि सुजसु लिय ।। कप्पड़ कणय कवाई ए नालकेरि संघ-पूज करे ।। मग्गणजण आणंदी ए नयणइ संघपति निघुट नरे ॥८॥ संघाहिविइ सुमुहुत्ती ए चारि महाधर थापियइ । केल्हू अति गुणवंतू ए भोजा-नंदणु जंपियइ ॥९॥ दूगड-वंसि पसिद्ध ए मीहागर संघपति-तणउ । देवराजु पुनिवंतू ए धर्मकाजि महियलि थुणउ ॥१०॥ झाझण-कुलह नरिंदू ए अरजुन-संभवु सधर नरो । सांगागरु जयवंतू ए वावेल गोत्र-पवित्र-करो ॥११॥ सोनू सुयण-सधारू ए सिक्खा-नंदनु जाणियए। ए चारइ नरवीरा ए संघपतिकाजि वखाणियए ॥१२॥ संघपति करमा-कुमरह कालागर तह तिलकु कियउ । धाल्हा-कुल-नह-चंदू ए मूलराजु संघपति ठविय उ ॥१३॥ सरवण-कुलि साधारू ए सिंधराज-नंदनु सबलो । संसारचंदु उदारू ए संधभार हुअ धुरि धवलो ॥१४॥ चहु दिसि संधु अपारू ए मिलियउ संख न जाणियइ । जिणसासणि जयकारू ए सयल लोय वस्खाणियइ ॥१५॥
॥ घात॥ वंसि नाहरसि नाहर सगुणु संघपत्ति नयणागरि उच्चउ करवि मेलि संघु बहु देसि हुँतउ खेमा गूडर ताणि करे सयल-लोय-मनि वचनि वसबउ वइसाखह सुदि दसमि दिणि महियलि महिमावंतु तिलकु लिय उ संघाहिवइ कोडि जुग्ग जयवंतु ॥१६॥
चतुर्थ भाषा सयलु संघो तह चालियओ, माल्हंतडे, मानवनइ कइ तीरि । विषम घाटी उल्लंघि करे, सुणि सुंदरि, पहुतु पहाडिय-नयरि ॥१॥ संघु दिगंतर चालियउ, माल्हंतडे, कामइधगढ़ि संपत्तु । सहारपुरिहि संघु गहगहिउ, सुणि सुंदरि, मथुरपुरीहिं पहुत्तु ॥२॥