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________________ मुहर्त में चतुर्विध संघ सहित श्री मुनीश्वरसूरिजी ने संघपति-तिलक किया । जेल्ही और चंभी आशीर्वाद देतो भामणा लेती थी। संघपति नयणा-गृजरी दंपति ने जीमनवार आदि करके मुयश प्राप्त किया । शुभ मुहूर्त में संघपति ने भोजा के नन्दन केल्हू, दूगड़ मीहागर के पुत्र देवराज, झांझण के वंशज अर्जुन के पुत्र सांगागर और वायेल वंश के सिक्खा के पुत्र सोनूइन चारों वीर पुरुषों को संपकार्य को सुचारू संचालनार्थ 'महाधर' पद पर स्थापित किए। संघपति करमा के पुत्र कालागर, पाल्हा के पुत्र मूलराज, सिंघराज के पुत्र सरवण के पुत्र संसारचंद्रको संघपति स्थापित किए । चारों दिशाओं से अपार संघ आकर मिला, जिनशासन का जयजयकार हुआ। बहादुरपुर से प्रयाण कर मानवनइ (मानव नदी ) के तीर पर चलते हुए विषम घाटी सहारपुर होता हुआ आनन्दपूर्वक उल्लंघन कर पहाड़िय नगर पहुंचे । वहाँ से दूसरी दिशा में चलकर 'कामइधागढ' और सहारपुर होता हुआ आनन्दपूर्वक संघ मथुरापुरी पहुंचा । दूर से ही पवित्र जिनस्तूप के दर्शन हो गए, संघपति नयणा जो मोहिल का नन्दन और गूजरी देवी का भर्तार था-ने संघ का पड़ाव यमुना तट पर डाला । नदी की तरल तरंगों को देखकर संघपति प्रसन्न हो गया। सीह मलिक उदार था, जिन प्रतिमाओं के दर्शन हुए । नारियल, फलादि भेंटकर कपूर और पुष्पों से अर्चा की । पार्श्वनाथ-सुपार्श्वनाथ और महावीर प्रभु के न्हवण-विलेपन-ध्वजारोपणादि से पापों का नाश किया । सिद्धक्षेत्र में केवली भगवान जम्बूस्वामी के स्तूप की वन्दना की । भावभक्तिपूर्वक चलते हुए स्तूप प्रदक्षिणा देकर जन्म सफल किया और भव भव में तीन जगत के देवाधिदेव पाच-सुपाच-वोरप्रभु की सेवा प्राप्त हो ऐसी भावना की । - मथुरा से लौट कर निर्भय पंचानन सिंह की भांति संघसहित संघपति सहार नगर होते हुए पहाडिय नगर पहुंचे । विउहा पार्श्वनाथ का बहुमान पूर्वक नमन कर पहाड़ी मार्ग उल्लंघनकर भुवहंड पार्श्वनाथ की वन्दना कर जहाँ जहाँ से संघ आया था, अपना अपना मार्ग पकड़ा । तेजारहपुर आकर नयणागर संघपति संघ सहित हिसार कोट के मार्ग से भटनेर पहुँचे ।
SR No.520754
Book TitleSambodhi 1975 Vol 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages427
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size30 MB
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