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संघपति-नयणागर-रास (सं. १४७४ की भटनेर से मथुरा यात्रा)
संपा. भंवर लाल नाहटा अब तक अज्ञात १५ वीं शताब्दी के तीन तीर्थयात्रा-संघों के रास यहाँ प्रकाशित किये जा रहे हैं । इन रासों की एक मात्र प्रति तत्कालीन लिखित हमारे संग्रह श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में हैं । ये तीनों रास तीन तीर्थस्थानों के यात्राओं के विवरण सम्बन्धी है । ये तीनों संद्य भिन्न भिन्न संघपतियों ने राजस्थानवर्ती भटनेर से निकाले थे ।
संबत १४७९ में भटनेर से मथुरा महातीर्थ का यात्री-संघ निकला था जिसके संघपति नाहरवंशीय नयणागर थे । इसमें भटनेर से मथुरा जाते व आते हुवे जो जो स्थान रास्ते में पड़े उनका अच्छा वर्णन है । _ पहले पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथ को भावपूर्वक प्रणाम करके फिर मनोवांछित देनेवाली कुलदेवी वांघुल को नमन कर कवि मथुरा तीर्थ के यात्रारंभ कराने वाले संघपति नयणागर का रास वर्णन करता है। - जंबूद्वीप-भरतक्षेत्र में भटनेर प्रसिद्ध है जहाँ बलवान हमीर राव राज्य करता है । वहां राजहंस की भाँति उभय-पक्ष-शुद्ध नाहर वंश में नागदेव साह हुए, जिनके १ खिमधर २ गोरिकु ३ फम्मण ४ कुलधर ५ कमलागर पांच पुत्र धर्मात्मा और देव-गुरु-भक्त थे । खिमघर के पुत्र १ सुंगागर २ गुज्जा ३ गुल्लागर ४ ठक्कुर थे। गुल्ला का पुत्र डालण और उसके १. मोहिल व २ धन्नागर पुन हुए । मोहिल की पत्नी जगसीही की कुक्षी से उत्पन्न नयणागर कुल में दीपक के सदृश है जिनकी पत्नी का नाम गूजरी है । धन्नागर की स्त्री साधारण की पुत्री और वयरा, हल्हा, रयणसीह परिवार की जननी है । . एक दिन नयणागर ने संघपति विनका, वीधउ, गुन्ना के पुत्र वइरा, भुल्लण के पुत्र, सज्जन, धन्ना के पुत्र वल्हा, हल्ला आदि परिवार को एकत्र करके मथुरापुरी सिद्धक्षेत्र की यात्रा द्वारा सात क्षेत्रों में द्रव्य व्यय कर जन्म सफल करने का मनोरथ कहा । वीघउ, और वहरो के प्रसन्नतापूर्वक समर्थन करने पर वड़गच्छ के मुनिशेखरसूरि-श्रीतिलकसूरि-भद्रेश्वरसूरि-मुनीश्वरसूरि के पसाय से ऋषभदेव भगवान को देवालय में स्थापन कर गूजरी देवी के भरि नयणागर और पोपा के कुलशंगार करमागर संघपति सहित मिती वैशाख वदि २ को संघ का प्रयाण हुआ। नाना वाजित्रों की ध्वनि से गगनमंडल गर्जने लगा, ब्राह्मण, भाट याचकरूपी दादुर-मोर शोर मचा रहे थे, एवं श्वेताम्बर मुनियों के मिस चतुर्दिक कीर्ति-धवलित हो रही थी । संघ प्रथम प्रयाण में ही लद्दोहर आ गया । फिर नौहर-गोगासर के मार्ग से हिसार कोट पह'चे, सरसा का बहुत सा संघ यहाँ आ मिला । छः दर्शन के लोगों का पोषण कर स्थानस्थान पर भक्ति करते हुए संघ सहित संघपति नयणागर बहादुरपुर आये । नागरिक लोगों ने बड़े समारोह से नगरप्रवेश कराया । खेमा-गूडर ताण कर संघ का पड़ाव हुआ । दिलावर खान ने नाना प्रकार से संघपति को सम्मानित किया । अनेक उत्सवों और शान्तिक पौष्टिक विधि सहित वाजे गाजे से सं. १४७९ मिती वैशाख शुक्ल १० भृगुवार के दिन शुभ