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अनाथी-महर्षि-संधि . २३ चुल्ल-माइ भउजाई य फूई य भज्ज--जणणि पित्रिय-मा बहिणि य । मंगल--रक्ख करहिं बहु भंगिहिं तो वड्ढइ दाहु सव्वंगिहिं ।
पत्ता यउ इतउ मिलियउ जणु कलकलियउ तो अणाहु हउं मगह निव । जा मह वल्लह पिय सा कन्हइ थक्किय गयणि मयंकह जुण्ह जिव ॥६॥
दुक्खि मह पत्त सा रायवह कन्नया, नेउ पासाउठेइ(?) आदन्नया (१)।' चलण चंपेइ फरसेइ सिरु करयलं, पिट्टि जंघोरु उयरं च वच्छत्थैल । ताण मुक्कं असण-पाण-तंबोलयं गंध-मल्लं च पहाणं च वर-तुलियं । पइहि सिरु देवि नीसासु गुरु मुंवए, अंसु-पुण्णेहिं नयणेहिं उरु सिंचए । मुक्कु सिंगारु नवि विरयएं केसया, सुसिय सव्वंग हुय अद्वि-तय-सेसया। भणिउ मई मिल्लि पिय सोगु पइ अन्नयं, भणइ तुह मरिसु जलु असणु जिउ मरणयं । जिम जिम देहि वद्धइ मह वेयणा, पडइ मुच्छाइ विच्छाय निच्चेयणा । धाह मिल्हेवि पभणेइ पिय-सामिणो, पियर-कुल-देवि विन्नवइ सुरवर-गणो । मज्ज नाहस्स फेडेइ पीडा दुहं, दासि तुर्ह तिम करहु जिम होई सुहं । कुरु घिउ दुद्ध न भुंजेमि तंबोलयं, देमि तुम्ह भोगु बलि सय-सहस-मुल्लयं । एस मह भज्ज अणुरत्त-रूवं सया, पियइ नवि नीरु जेमेइ अणुमन्निया । नेय दुक्खाउ मोएइ बहु भत्तया, मह भणाहस्स दुह पीड सव गत्तया ।
घत्ता जा फिट्टइ नवि दुहु होइ न मह सुहु ता मई चितिउ जह किम इ । रोगिहि मिल्लिज्जउ ता पडिवजउ जिणह दिक्ख पसरह" तिम इ ॥ ७ ॥
८] जाव चिंतेवि जिण-दिक्व मई निय-मणे, ताव सुह लागु पसरणह सिरि तक्खणे । उरह उयरस्स अरूण जंघाउयं, जेम विसु मंत-जोएण तिम दुह गयं । एम निसि खयह गय वेयणा खय गया, सच्छ निय-देहि संलद्ध मैई निदया। ता पभायम्मि पिय-माइ बंधव-जणो, अंगि न हु माइ हरसिउ सयल परियणो । विज्ज-"मतिग य नेमित्त-जोइस-जणा, सयल निय सत्ति फोरवहिं हरसिय-मणा ।
१. दोहु २. भ्रष्ट पंक्ति ३. चल्लण ४. पिद्धि ५. वच्छच्छेलं ६. वियरए ५. जेम ८. तुम्हा ९. हुइ १०. महन्भज्ज अणु० ११. रह ति० १२. मइ १३. मिई १४. मला १५ सति फोखहि.