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अज्ञात-कर्तृक भणित मई वहउ मा को वि मणि गवयं, अवरु नं ओसह जेण महु दुह गयं । जाव जीवं च सेबेमि तं 'ओसह, सब-सावज्ज-जोगे य वज्जिय महं । करि पसाउ य मुक्क लहुं मह बंधवा, लेमि जिम दिक्ख महवयह चत्तासया । नेह-नियलाई भंजेमि गुरु दुविखणा, चत्त संगो य कय जलं व कुविखणा (१) । गहिवि निण-दिक्ख दस-भेउ जई-धम्मओ, समाई-गुत्तियउत्त समभावओ ।। पुढवि जल जलण वाउ य वण काइणं, बि --त्ति य चरिंदि-पंचिंदिय-पाणिणं । जाउ हडं नाहु अप्पाण भन्नु वि जणे, वसुह विहरंतु संपत्तु तव काणणे । .
घत्ता कम्मह खय-कारणु भव-दुह-वारणु सरणु सहायउ रायवर । जिण- वयणु सुणंतह चरणु धरंतह अप्प इ अप्पउ नाह वर ॥८॥
[९] अप्पा च नरय-गइ-दुक्खु देइ अप्पउ सा सय-सुहि मुक्खि नेहि । .. अप्पउ नंदणवणु कामधेणु निय-अप्प दुटु अरु सुटु सयणु । बंधइ अणवद्विउ असुह-कम्मु अप्पा सुपइदइ करइ धम्मु । विसु अमीउ सहोयरु सत्त लोइ भव-सुक्ख -हे उ सुणि जेम होइ । . जे गहवि दिक्ख महवयई लेवि सामन्तु धरहिं अंगीकरेवि । । रस-गिद्धि न अप्पउ वसि करंति बंधेवि कम्मु भव-दुइ सहति । उवउत्त न जे इरिया ये भास न हु वज्जइ बायालीस दोस । आयाण-समीई नोसग्गयाहिं ते मूढ़ न जिण-मग्गेण जाहि । चिरु लिंगु धरहिं तव-नियम-हीण अप्पं च किले सहि मूढ दीण । उस्सुत्त कहहिं कुडी कहाहिं वीससिय-जंतु लिउ नरय जाहिं ।। कोऊहल जोइस सुमिण मंत लक्षण य कुहेडय विज्जः तंत । आवजहि गारव-गिद्ध जि जणु दुहि पत्तइ ते न हु हुँति सरणु । पत्ता
: : न. वि करइ त केसरि, विसु अरि अहि करि, नवि वेयालु नं जल-जलणु ।
दय-खति-विवजिउ , अप्पु न निज्जिर, करइ जु जीवह दुटु-मणु ॥९॥
. आहारु उवहि जे वसहि पत्तु अणए सण मुंजहिं राई-भत्तु । ., विमुयहि सचित्त अचित्त कुद्ध हुयवह-सायरम्मि तन्ह-लुद्ध ।
१. उसह २. -हिकख ३. जय-धम्मउ ४. समीय ५. वाऊ य ६. सन्नु ७. सुक्खु ८. अगी० ९. इ १०. ०मीय ११. एहिं १२. उसत्त १३. हूति १४ रायब्भतुः ।
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