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धर्ममुन्दरकृत
फाग राजन रथ हिव वा[लउ], वालउ म बालीम देह नाहला-नयणि निहाल, पालु नव-भव-नेह ॥१६॥ कंतनई करउं उआरणां, भमणां निज भरतार, गुणनिधि गरूअ गोसाइ, साइं ........ एकवार .।१६५॥ राजल-प्रीति संपुरिय, गरूइ गइ गिरनारि, विलरइ प्रीअ-संयोगि, अंगो अंगि अपार ॥१६६॥ सकल सदा फल सेवई, रेवइ गिरिवर-शृगि, याद[व] ... रस नागर, आगर-गुण नवरंग ॥१६७॥
.. काव्यम्। हरः स्मरेणाऽधिगतः कलावान् कलङ्कवृत्तो दिनकृत् सरो(रा)गः । क्षारोऽम्युधिश्च धनवान् विधाता न केन साम्यं लभते जिनेन्द्रः ॥१६८॥
फाग संवत चौद चउराणवइ, जाणवइ चतुर अपार फाग रचिउ रसि बंधुर, जिणवर नेमिकुमार ॥१६९॥ श्रीमानुकेशवंशे प्रथितगुणगणव्यक्तमुक्ताफ(लौघः)
रोचिष्णुब्रह्मविद्याविदलितकुलपः क्षीणपापारिपक्षः । श्रीमद्ब्रह्मादिसंस्थप्रभुपद नतिभिः पूजिताभ्यन्तरात्मा धर्मश्रीणां निवासी जयति च सततं सुन्दरो वाच(कोऽत्र) ॥१७०॥
श्रीक्सकसरि गरूअ रचीअ, विरचिउ नेमि-विलास, पामीअं नवरस संपद, संपद-सकल-निवास ॥१७॥ -
काव्यम् श्रीनेमिनाथनवबालकलावि(नोदं), श्रीधर्मसुन्दरकृतं सरसं वसन्ते । यः पापठीति रसनास्फुटभक्तिभूरि तस्योद्भवन्ति (?) सहसा सकलाश्रयश्च ।।१७२।
इति श्र नेमीश्वरबाललीलाफाग शुभं भूयात् ब्रह्मवर्द्धमानपादपदुमप्रसादात्