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________________ } पसूअ-वाड ऊघाडीभ जिनवर हरखित निज - मनि रैवत गरुउ भूधर, रास रमई जस कंदरि, धर्मसुन्दरकृत काव्यम् कारागारात् सपदि जिनपो मोचयित्वाथ जन्तून् बन्धूनेतानिव करुणया प्यार्द्रचेताः समन्तात् । क्रीडाशैलं सुरपरिषदां नग्भिवानेष मुख्यः प्राणित्राणप्रवण हृदयाः प्रायशोऽमी जिनाः स्युः || १४८ || गिरिवर - सिरि गिरिनार, नरवर नेमकुमार ॥ १४९ ॥ काव्यम् सद्वृत्तश्रीकनककलशस्योपमानं नयन्तौ तव रथ वालीअ जिणवर, पुहतु तब परमेसर, तोडिय तस तनु-पास निज-तन पूरइ आस ॥ १४६ ॥ बंधुर सोवन - संग सुंदरि सुर नवरंग ॥ १.४७॥ सद्वक्षोजौ सुकठिनतनौ पूर्णचन्द्राननायाः । एकं मुक्त्वा यदुपतिकुलाम्भोजमार्त्तण्डबिम्बं राजलि विरह विभापर, उरवर सिंचय जल - भरि, श्रीमन्नेमिं मदनदहनं को विहातुं समर्थः ॥ १५०॥ वर विण सूनी सी किरि, कापि कांइ ते सिरजीअ, फाग १ प्रेक्षानुकम्याभरात् लोपइ वलय-शृङ्गार, नव परि किरि जल धार ॥ १५१ ॥ सीकिरि सी किरतार, वरजी अजे भरतार ॥। १५२ ।। काव्यम् व्यालोलेक्षणदीर्घिकाः पशुवधं प्रेक्ष्यानुकम्पाभरात्,' मां त्यक्त्वा नवयौवनां शशिमुखीं गौरी कलाशालिनीम् वृक्षं वृक्षमधिश्रिता सकरुणं ब्रूतेऽत्र राजीमती यातः केन पथा कथां कथय में चाशौकनेमीश्वरः ॥ १५३ ॥ नव्योद्भिन्नसुगन्धिपुष्पनिकर व्यालोलसल्लोचनैः चञ्चत्कज्जलमजुलै र लिकुलादालोकयन् विष्टपम् ।
SR No.520754
Book TitleSambodhi 1975 Vol 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages427
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size30 MB
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