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नेमीश्वर बाललीला. फाग
काव्यम् एकं । 'नाथमवेत्य तोरणगतं जीवानवझं मुदा
प्राह प्राणिगणः स नर्मवचसा वेत्ति प्रभु पण्डितः । सद्यो दर्शनमात्रतो ....वताय लम्भिताः प्राणिनः ।।
तं वै वाञ्छति मोक्षमेव सहसाऽप्यस्मादृशोऽयं जनः ॥१३८॥ पेखीअ वाट कि मृग-कुल
आकुल अंगि अपार जीव दयां करि दुमिउ
नीमिउ थिर-संसार ।।१३९।। करुणा-रसि करि पिउ झूरइ मनह मम्झारि नव-भव-नेह-गहिल्लय मेल्हासि वरनारि ॥१४०॥
काव्यम् स्वामी चामीकररुचितनुः मुग्धबालां विशा[लां]
प्रेक्षाप्युच्चैश्चकितहरिणीप्रेक्षणां तोरणस्थं । दोयी नीत्वा विरविवशां चेतसा स्वान्तदृष्टया किञ्चित्काल नयनयुगलालिङ्गितः कातरोऽभूत् ॥ १४१॥
फाग पेखीअ वाट कि मृग-कुल भाकुल अंगि अपार जीव--दयां-करि दूमिउ
नीमिउ सयल-संसार ॥१४२।। जीव -दया-व्रत पालीअइ
टालीअइ पाप-व्यापार विरूआ सपन-तणी परि परिहरि जीव-संहार ॥१४३॥
काव्यम् राजीमत्याश्चटुलनयनैर्विभ्रमैनैव विद्धः
सवृत्तश्रीस्तनपरिलसव्यक्तमुक्तागणायाः । प्रोद्यच्चन्द्रप्रतिमवदनप्राप्तशोभाभरायाः देवः सीमा स नियमवतां नेमिनाथो जिनेन्द्रः ॥१४४॥
फाग कुण ए नरग-निबंधन
बंधन पशु-वध कीघ सइ-हत्थि पास विछोडीअ
_ छोडीअ जगि जस लीध ॥१४५॥ १. जीवावनज्ञ २. नयनयुगलालटिगत .