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धर्मसुन्दरकृत
सुजन-सुहासिणि माल्हइ सालि- सुखंड-डुंगोरडी, नेमि जिणेसर समरथ वर-शृंगारइ जिणेसर, सेना तुग तुरंग-नी खुर-रवि खेहा-डंबरिं चालई मत्त-मतगज चडीम रहिया आधोरण जाणे जलधर गाजइ डोलई सातइ सायर, सिरिवरि मेघाडंबर सेवइ चामर अनुदिन चिंध-पताका फुरकई खंचीय रथ अति हरखि सोलह-सहस गाअई सोलही रूप-कला-गुणि सोहइ किन्नरी-कंठ समारी नेमि-तणा गुण गाई छपन-कोडि रथ चाही सेष-तणी फणि संकीय गुखि रहीनइ निरखइ नव-भव-नेह जगावइ । मानिनि मोहन-कंदलु काम कहुं कई सुरपति तोरणि यादव देखील दीटु दरसिणि सामल भजउ भवना बंधन पातक-पास विछोडु १. इंगोरडी
आलई पुग नइ पान उरडी भरइ पकवान. ॥१२४॥ मन्मथ-सिउं समरूपि सिरुवरि विरचई खूप ॥१२५।। रंग-नो वाहइ रेलि अंबरि झंपिउ हेलि ॥१२६।। अंगज किरि गिरनार तोरणि दसइ दसार ॥१२७॥ वाजइ गुहिर नोसाणकायर कंपइ प्राण ॥१२८॥ अंबर जिम सुविशाल आनन-कमल-मराल ॥१२९।। लहकई गंग-तरंग निरखइं रहोस पतंग ॥१३॥ धुलही रमणि-रसाल मोहइ नक्षत्रमाल ॥१३१॥ वारोअ कोकिल-कंठ वाभइ वंस वैकुंठ ॥१३२॥
राहोम कहइ मुरारि वंकीय थासि भारि ॥१३३॥ हरखीअ राजल -नारि आवइ ओ भरतार ॥१३४।। चैदल चतुर अपार " जिनपति नेमिकुमार ॥१३५॥ हरखीअ हरिण-नुं साथ आमल टालउ नाथ ॥१३६॥ जीवन जगति-साधार मोडउ दुक्ख-संसार ॥१३७॥