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नेमोश्वर बाललीला फागं
फाग मेखला कटि-तटि व्यापइ, तापइ तरूण-शरीर धाधरी मणिमय घुमघुमइ, भ्रमि भमई भ्रमरती धीर ॥११४॥ सिरूवरि सोवन-राखडी, नहुँतरी प्रीति कि प्रीति, नवजोवण नवरंगीअ, चंगिअ नव -भव-नेह ॥११५।। रतन-तणां करि कंकण, दरपण जिम डाबकंति, मांड मनाविउ विवाहलउ, वाह लही श्रीकंति ॥११६॥
काव्यम् नानारत्ननिवेशपेशलरसन्मञ्जीरम ध्वनिः
- व्याजात् संस्तुतिमातनोति किमिति स्वर्णाचलो मञ्जुलः आपादं विरचय्य भूषणगणं भोज्या स्फुरदीधितिः देवि त्वत्तनुसङ्गमात् समभवत् स्वर्ण सुगन्धं मम ॥११॥
फाग समुद्रविजय-धरि मंगल, धवल गाअई सुर-नारि, हरख-तणां करेई कंदल, मादल धूमई बारि ॥११८॥ मंडप विरचई सुर-नर, किन्नर गाअई गान, सुजन-सुरासुर-गयमर, हयमरि झंपिउ भानु ॥११९॥ धवल-तणी धर धोरणि तोरिण नाचई रंभ दूख-पराभव लोपइ रोपइ कदली- यंभ ।१२०।। गायण हूह तुंबर अंबर पूरिउ गानि वनिता चतुर धृताची . नाची निज विज्ञानी. ॥१२१॥
काव्यम् भानुर्दीपकलां गतो हिमकरः श्रीखण्डसत्पात्रतां
ताराः स्वस्तिकतां श्रयन्ति सततं कल्पद्रुमास्तोरणम् क्षीराब्धिर्जलकुम्भतां नवसुधा भक्ष्यादिकं चाभवत् भोज्यास्तत्र विवाहवेश्मनि रसादित्युत्सवानां घटा ॥१२२॥
फाग बिहु वेवाही-मंदिरि सुंदरि रास रमति वरनई रंगि वधावइ आवइ हरखि हसंत ॥१२३।।