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धर्मसुन्दरकृत
सुर-नर-किन्नर माहेइ, हसतीय नवरसि नारीय, सुललित पौन-पयोहरि, प्रभु नवि भेदिउ तरुणो, काम-भुगम-लहिरडी, जीतीअ रमतई जिणवर, जिणवर गुण गाअई, सामल-व्रण तिणि कीधा, पगि लागी हरि वीनवइ, मेह भव अहिलउ मानि -न परणिउ प्रथम तीर्थकर, हरि हर बंभ पुरंदर सुणि-न जिणेसर सामल, परणि-न अक जि तरूणी, उग्रसेन- अंगोभवि', परणउ राणीय राजमति
रोहइ राही नारि, वारीय वारि मझारि ॥८२।। ओ हरि हरिविउ हेजि, तरणि'-तरूणय तेजि ॥८३।। लहिरडी नीर मझारि, मणहरि नेमिकुमार ॥८४।। वाअई वंस वैकुंठ, रीधा कोकिल - कंठ ।।८५।। नव नवइ भावि लसंत, मानिनि-विहु अरहित ॥८६॥ शंकर त्रिभुवन-नाथ सुंदर सुरवर-साथ ॥८७॥ विफल गम्या तई दीह, तरूणी माहे लीह ॥८८॥ उत्तमि इति सुविचारि, सरसति-'नइ अवतारि ॥८९।।
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काव्यम् देव त्वं नवयौवनां परिणय श्रीउग्रसेनक्षिते
भव्यसुतां गुणैकवसतिं राजीमती सत्वरम् ॥ रङ्गत्कृष्णकुरङ्गशावनयनां राकाशशाङ्कोपमा - को चक्रश्रीपरिपीडिताम्बुजभरं प्रोचे हरिः स्वामिनम् ॥१०॥
फाग
कुंकमि केसर-पिंजरी, मंजरी मोहण-वेलि, चालइ चतुर चकोरीय गोरीय गयमर-गेलि ॥९१॥ मंजुल जल रत्तनाली
कालीअ कज्जल भावि अखंडी मोहइ त्रिभुवन खंजन पंखिन भावि ॥९२॥ मुगताफल-मणि राजइ । छाजइ नाशावंश १. तरुणी २. अंगभमि ३. राकाशशाऽकोपमा ४. जल